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________________ 72] [ राजप्रश्नीयसूत्र उन तोरणों के आगे दो-दो नागदन्त (खूटे) हैं / मुक्तादाम पर्यन्त इनका वर्णन पूर्ववणित नागदन्तों के समान जानना चाहिये। उन तोरणों के आगे दो-दो अश्व, गज, नर, किन्नर, किंपुरुष, महोरग, गन्धर्व और वृषभ संघाट (युगल) हैं / ये सभी रत्नमय, निर्मल यावत् असाधारण रूप-सौन्दर्य वाले हैं / इसी प्रकार से इनकी पंक्ति (श्रेणी) वीथि' और मिथुन (स्त्री-पुरुषयुगल) स्थित हैं / उन तोरणों के आगे दो-दो पदमलतायें यावत् (नागलतायें, अशोकलतायें, चम्पकलतायें, अाम्रलतायें, वनलतायें, वासन्तीलतायें, अतिमुक्तकलताये, कुदलतायें)श्यामलतायें हैं / ये सभी लतायें पुष्पों से व्याप्त और रत्नमय, निर्मल यावत् असाधारण मनोहर हैं। उन तोरणों के अग्र भाग में दो-दो दिशा-स्वस्तिक रखे हैं, जो सर्वात्मना रत्नों से बने हुए, निर्मल यावत् (मन को प्रसन्न करने वाले, दर्शनीय, अभिरूप-मनोहर) प्रतिरूप-अतीव मनोहर हैं / उन तोरणों के आगे दो-दो चन्दनकलश कहे हैं / ये चन्दनकलश श्रेष्ठ कमलों पर स्थापित हैं, इत्यादि वर्णन पूर्ववत् समझ लेना चाहिए / उन तोरणों के आगे दो-दो भंगार (झारी) हैं / ये भृगार भी उत्तम कमलों पर रखे हुए हैं यावत् हे आयुष्मन् श्रमणो ! मत्त गजराज की मुखाकृति के समान विशाल प्राकार वाले हैं। उन तोरणों के आगे दो-दो आदर्श-दर्पण रखे हैं / इन दर्पणों का वर्णन इस प्रकार है इनकी पाठपीठ सोने की है, (चौखटे वैड्यं मणि के और पिछले भाग वज्ररत्नों के बने हुये हैं) प्रतिबिम्ब मण्डल अंक रत्न के हैं और अनघिसे होने (घिसे नहीं जाने पर भी ये दर्पण अपनी स्वाभाविक निर्मल प्रभा से युक्त हैं / हे आयुष्मन् श्रमणो! चन्द्रमण्डल सरीखे ये निर्मल दर्पण ऊंचाई में कायार्ध (प्राधे शरीर) जितने बड़े-बड़े हैं। उन तोरणों के आगे वज्रमय नाभि वाले (वज्ररत्नों से निर्मित मध्य भाग वाले) दो-दो थाल रखे हैं / ये सभी थाल मशल आदि से तीन बार छांटे गये, शोधे गये अतीव स्वच्छ निर्मल अखण्ड तंदुलों-चावलों से परिपूर्ण-भरे हुए से प्रतिभासित होते हैं / हे आयुष्मन् श्रमणो ! ये थाल जम्बूनदस्वर्णविशेष-से बने हुए यावत् अतिशय रमणीय और रथ के पहिये जितने विशाल गोल आकार के हैं / उन तोरणों के आगे दो-दो पात्रियाँ रखी हैं / ये पात्रियां स्वच्छ निर्मल जल से भरी हुई हैं और विविध प्रकार के सद्य-ताजे हरे फलों से भरी हुई-सी प्रतिभासित होती हैं / हे आयुष्मन् श्रमणो ! ये सभी पात्रियां रत्नमयी, निर्मल यावत् अतीव मनोहर हैं और इनका आकार बड़े-बड़े गोकलिंजरों (गाय को घास रखने के टोकरों) के समान गोल हैं। उन तोरणों के आगे दो दो सुप्रतिष्ठकपात्र विशेष (प्रसाधन मंजूषा-शृगारदान) रखे हैं। प्रसाधन-शृगार की साधन भूत औषधियों आदि से भरे हुए भांडों से सुशोभित हैं और सर्वात्मना रत्नों से बने हुए, निर्मल यावत् अतीव मनोहर हैं / their 1. एक दिशोन्मुख एवं परस्पर एक दूसरे के उन्मुख अवस्थान को क्रमश: पंक्ति और वीथि कहते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003481
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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