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________________ द्वारों के उभय पार्श्ववती तोरण] [71 सुत्तसिक्कगवच्छिया णोलसुत्तसिक्कगवच्छिया, लोहियसुत्तसिक्कगवच्छिया हालिद्दसुत्तसिक्कगवच्छिया, सुकिल्लसुत्तसिक्कगवच्छिया बहवे वायकरगा पन्नत्ता सव्ववेरुलियमया अच्छा जाव' पडिरूवा / तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो चित्ता रयणकरडगा पन्नत्ता, से जहाणामए रन्नो चाउरंतचक्कवट्टिस्स चित्ते रयणकरंडए वेरुलियमणिफलिहपडलपच्चोयडे साते पहाते ते पतेसे सवतो समंता प्रोभा सति उज्जोवेति तवति पभासति, एवमेव ते वि चित्ता रयणकरंडगा साते पभाते ते पएसे सव्वनो समंता प्रोभासंति, उज्जोति, तवंति पभासंति / तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो हयकंठा, गयकंठा, नरकंठा, किन्नरकंठा, किपुरिसकंठा, महोरगकंठा, गंधव्वकंठा, उसभकंठा सम्वरयणामया अच्छा जावर पडिरूवा। तेसि णं तोरणाणं पुरो दो-दो पुटफचंगेरीनो, मल्लचंगेरोमो, चुन्नचंगेरीयो, गंधचंगेरोमो, वत्थचंगेरीमो, शाभरणचंगेरीमो, सिद्धत्थचंगेरीमो लोमहत्थचंगेरीयो पन्नत्तानो सवरयणामयानो अच्छाप्रो जाव' .डिरूवारो। तेसि णं तोरणाणं पुरो दो दो पुप्फपडलगाई जाव लोमहत्थपडलगाई सम्वरयणामयाई अच्छाई जाव पडिरूवाई। तेसि णं तोरणाणं पुरो दो दो सोहासणा पण्णत्ता, तेसि णं सीहासणाणं वण्णो जावर दामा। तेसि णं तोरणाणं पुरनो दो दो रुप्पमया छत्ता पन्नता, ते णं छत्ता वेरुलियविमलदंडा, जंबूणयकम्निया, वइरसंधी, मुत्ताजालपरिगया, अट्ठसहस्सवरकंचणसलागा, ददरमलयसुगंधिसवोउयसुरभिसीयलच्छाया, मंगलभत्तिचित्ता, चंदागारोवमा। तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो चामरानो पन्नत्तानो, तानो णं चामरानो चंदप्पभवेरुलियवयरतानामणिरयणखचियचित्तदण्डामोय सुहमरययवीहवालातो संखंककुददगरयममयमहियफेणपुजसन्निगासातो, सव्वरयणामयाओ, प्रच्छामो जाव पडिरूवानो। तेसि णं तोरणाणं पुरनो दो दो तेल्लसमुग्गा, पत्तसमुग्गा, चोयगसमुग्गा, तगरसमुग्गा, एलासमुग्गा, हरियालसमुग्गा, हिंगुलयसमुग्गा, मणोसिलासमुग्गा, अंजणसमुग्गा, सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा। १३२-उन द्वारों के दक्षिण और वाम-दोनों पावों में सोलह-सोलह तोरण हैं / वे सभी तोरण नाना प्रकार के मणिरत्नों से बने हुए हैं तथा विविध प्रकार की मणियों से निर्मित स्तम्भों के ऊपर अच्छी तरह बन्धे हैं यावत् पद्म-कमलों के झूमकों-गुच्छों से उपशोभित हैं। उन तोरणों में से प्रत्येक के आगे दो-दो पुतलियां स्थित हैं / पुतलियों का वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिए। 1-2-3-4 देखें सूत्र संख्या 118 5. सिंहासन के वर्णन के लिये देखें सूत्र संख्या 48, 49, 50, 51 / 6. पाठान्तर–णाणामणिकणगरयणविमलमहरिहतवणिज्जज्जलविचित्तदंडापो चिल्लियायो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003481
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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