________________ तप का विवेचन] भाव-प्रवमोदरिका क्या है—कितने प्रकार की है ? भाव-अवमोदरिका अनेक प्रकार की बतलाई गई है, जैसे—क्रोध, मान (अहंकार), माया (प्रवञ्चना, छलना) और लोभ का त्याग (अभाव) अल्पशब्द---क्रोध आदि के आवेश में होनेवाली शब्द-प्रवृत्ति का त्याग, अल्पझंझ-- कलहोत्पादक वचन आदि का त्याग / यहां 'अल्प' शब्द का प्रयोग निषेध या प्रभाव के अर्थ में है, जिसका तात्पर्य यह है कि क्रोध आदि का उदय तो होता है पर साधक आत्मबल द्वारा उसे टाल देता है, उभार में नहीं आने देता अथवा तदुत्पादक निमित्तों से स्वयं हट जाता है। भिक्षाचर्या क्या है—उसके कितने भेद हैं ? भिक्षाचर्या अनेक प्रकार की बतलाई गई है, जैसे-१. द्रव्याभिग्रहचर्या-खाने-पीने आदि से सम्बद्ध वस्तुत्रों के विषय में विशेष प्रतिज्ञा --अमुक वस्तु अमुक स्थिति में मिले तो ग्रहण करना-इस प्रकार भिक्षा के सन्दर्भ में विशेष अभिग्रह स्वीकार करना, 2. क्षेत्राभिग्रह-चर्या-ग्राम, नगर, स्थान आदि से सम्बद्ध प्रतिज्ञा स्वीकार करना, 3. कालाभिग्रहचर्या-प्रथम पहर, दूसरा पहर आदि समय से सम्बद्ध प्रतिज्ञा स्वीकार करना, 4. भावाभिग्रहचर्या -हास, गान, विनोद, वार्ता आदि में संलग्न स्त्री-पुरुष आदि से सम्बद्ध अभिग्रह-प्रतिज्ञा स्वीकार करना, 5. उरिक्षप्तचर्या-भोजन पकाने के बर्तन से गृहस्थ द्वारा अपने प्रयोजन हेतु निकाला हुआ आहार लेने का अभिग्रह-प्रतिज्ञा लिये रहना, 6. निक्षिप्तचर्या-भोजन पकाने के बर्तन से नहीं निकाला हुअा आहार ग्रहण करने की प्रतिज्ञा करना, 7. उक्षिप्त-निक्षिप्त-चर्या--भोजन पकाने के बर्तन से निकाल कर उसी जगह या दूसरी जगह रखा हुआ आहार अथवा अपने प्रयोजन से निकाला हुमा या नहीं निकाला हुअा-दोनों प्रकार का आहार ग्रहण करने की प्रतिज्ञा स्वीकार करना 8. निक्षिप्त-उक्षिप्तचर्या-भोजन पकाने के बर्तन में से निकाल कर अन्यत्र रखा हुआ, फिर उसी में से उठाया हुमा माहार ग्रहण करने की प्रतिज्ञा स्वीकार करना, 9. वतिष्यमाण-चर्या-खाने हेतु परोसे हए भोजन में से भिक्षा ग्रहण करने की प्रतिज्ञा लिए रहना, १०.संहियमाणचर्या-जो भोजन ठंडा करने के लिए पात्र आदि में फैलाया गया हो, फिर समेट कर पात्र आदि में डाला जा रहा हो, ऐसे (भोजन) में से आहार लेने की प्रतिज्ञा करना, 11. उपनीतचर्या--किसी के द्वारा किसी के लिए उपहार रूप में भेजी गई भोजनसामग्री में से भिक्षा ग्रहण करने की प्रतिज्ञा लेना, 12. अपनीतचर्या ----किसी को दी जाने वाली भोज्य-सामग्री में से निकालकर अन्यत्र रखी सामग्री में से भिक्षा ग्रहण करने की प्रतिज्ञा स्वीकार किये रहना, 13. उपनीतापनीतचर्या स्थानान्तरित की हुई भोजनोपहार -सामग्री में से आहार लेने की प्रतिज्ञा स्वीकार करना अथवा दाता द्वारा पहले किसी अपेक्षा से गुण तथा बाद में किसी अपेक्षा से अवगुण-कथन के साथ दी जाने वाली भिक्षा स्वीकार करने की प्रतिज्ञा लेना, 14. अपनीतोपनीत-चर्या ---किसी के लिए उपहार रूप में भेजने हेतु पृथक् रखी हुई भोजन-सामग्री में से भिक्षा लेने की प्रतिज्ञा स्वीकार करना अथवा दाता द्वारा पहले i से अवगुण तथा बाद में किसी अपेक्षा से गुण कथन के साथ दी जाने वाली भिक्षा स्वीकार करने की प्रतिज्ञा लेना, 15. संसृष्ट-चर्या–लिप्त हाथ आदि से दी जाने वाली भिक्षा लेने की प्रतिज्ञा रखना, 16. असंसृष्ट-चर्या-अलिप्त या स्वच्छ हाथ आदि से दी जाने वाली भिक्षा स्वीकार करने की प्रतिज्ञा रखना, 17. तज्जातसंसृष्ट-चर्या..दिये जाने वाले पदार्थ से संभत-लिप्त हाथ प्रादि से दिया जाता आहार स्वीकार करने की प्रतिज्ञा रखना, 18. अज्ञात-चर्या--अपने को अज्ञात-अपरिचित रखकर निरवद्य भिक्षा ग्रहण करने की प्रतिज्ञा करना, 19. मौन-चर्या-स्वयं मौन रहते हुए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org