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________________ 30 // [ओपपातिकसूत्र भिक्षु प्रतिमा भिक्षुत्रों की तितिक्षा, त्याग तथा उत्कृष्ट साधना का एक विशेष क्रम प्रतिमाओं के रूप में व्याख्यात हुआ है। वृत्तिकार प्राचार्य अभयदेवसूरि ने स्थानांग' सूत्र की वृत्ति में प्रतिमा का अर्थ प्रतिपत्ति, प्रतिज्ञा तथा अभिग्रह किया है / भिक्षु एक विशेष प्रतिज्ञा, संकल्प या निश्चय लेकर साधना की एक विशेष पद्धति स्वीकार करता है। प्रतिमा शब्द प्रतीक या प्रतिबिंब का भी वाचक है। वह क्रम एक विशेष साधन का प्रतीक होता है या उसमें एक विशेष साधना प्रतिबिम्बित होती है, इसी अभिप्राय से वहाँ अर्थ-संगति है। प्रतिमा का अर्थ मापदण्ड भी है / साधक जहाँ किसी एक अनुष्ठान के उत्कृष्ट परिपालन में लग जाता है, वहाँ वह अनुष्ठान या प्राचार उसका मुख्य ध्येय हो जाता है। उसका परिपालन एक आदर्श, उदाहरण या मापदण्ड का रूप ले लेता है अर्थात् वह अपनी साधना द्वारा एक ऐसी स्थिति उत्पन्न करता है, जिसे अन्य लोग उस प्राचार का प्रतिमान स्वीकार करते हैं। समवायांग सूत्र में साधु के लिए 12 प्रतिमाओं का निर्देश है / भगवती सूत्र में 12 प्रतिमाओं की चर्चा है। स्कन्दक अनगार ने भगवान् की अनुज्ञा से उनकी पाराधना की। दशाश्रतस्कन्ध की सातवीं दशा में 12 भिक्ष-प्रतिमाओं का विस्तार से वर्णन है। तितिक्षा वैराग्य, आत्मनिष्ठा, अनासक्ति आदि की दृष्टि से वह वर्णन बड़ा उपादेय एवं महत्त्वपूर्ण है, उसका सारांश इस प्रकार है-- पहली प्रतिमा (एकमासिक प्रतिमा) में प्रतिपन्न साधु शरीर की शुश्रूषा तथा ममता का त्यागकर विचरण करता है / व्यन्तर-देव, अनार्य-जन, सिंह, सर्प आदि के उपसर्ग--कष्ट उत्पन्न होने पर वह शरीर के ममत्व का त्याग किए स्थिरतापूर्वक उन्हें सहन करता है। कोई दुर्वचन कहे तो उन्हें क्षमा-भाव से वह सहता है। वह एक दत्ति आहार ग्रहण करता है। दत्ति का तात्पर्य यह है कि दाता द्वारा भिक्षा देते समय एक बार में साधु के पात्र में जितना पाहार पड़ जाय, वह एक दत्ति कहा जाता है / पानी प्रादि तरल पदार्थों के लिये ऐसा है, देते समय जितने तक उनकी धार खण्डित न हो, वह एक दत्ति है। कइयों ने दत्ति का अर्थ कवल भी किया है। प्रतिमाप्रतिपन्न भिक्ष, भगवान ने जिन जिन कुलों में से प्राहार-पानी लेने की आज्ञा दी है, उनसे बयालीस दोषवजित आहार लेता है / वह आहार लेते समय ध्यान रखता है कि कुटुम्ब के सभी व्यक्ति भोजन कर चुके हों, श्रमण, ब्राह्मण, अतिथि, कृपण--भूखे, प्यासे को दे दिया गया हो, गृहस्थ अकेला भोजन करने बैठा हो। ऐसी स्थितियों में वह भोजन स्वीकार करता है। दो, तीन, चार, पांच पादमी भोजन करने बैठे हों, तो वहाँ वह भिक्षा नहीं ले सकता / गर्भवती स्त्री के खाने के लिए जो भोजन बना हो, उसके खाये बिना वह आहार नहीं ले सकता / बालक के लिए जो भोजन हो, 1. स्थानांगसूत्र वृत्ति, 61/184 2. समवायांगसूत्र, स्थान 12/1 3. भगवतीसूत्र, 2/1/58-61 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003480
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1992
Total Pages242
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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