________________ 34] [औषपातिकसूत्र इस प्रतिमा में पहले उपवास फिर क्रमशः बेला, तेला, चार दिन का उपवास, पांच दिन का उपवास, तेला, चार दिन का उपवास, पांच दिन का उपवास, एक दिन का उपवास, बेला, पांच दिन का उपवास, एक दिन का उपवास, बेला, तेला, चार दिन का उपवास, बेला, तेला, चार दिन का उपवास, पांच दिन का उपवास, एक दिन का उपवास, चार दिन का उपवास, पाँच दिन का उपवास, एक दिन का उपवास बेला तथा तेला--यह इस प्रतिमा का तपःकम है / ___ इस तपस्या की प्रक्रिया समझने हेतु पच्चीस कोष्ठकों का एक यन्त्र बनाया जाता है / पहली पंक्ति के कोष्ठक के आदि में 1 तथा अन्त में पांच को स्थापित किया जाता है। शेष कोष्ठकों को 2, 3, 4 से भर दिया जाता है। दूसरी पंक्ति में प्रथम पंक्ति के मध्य के अंक 3 को लेकर कोष्ठक भरे जाते हैं / 5 अंतिम अंक है / उसके बाद आदिम अक 1 से कोष्ठक भरे जाने प्रारम्भ किये जाते हैं अर्थात् 1 व 2 से भर दिये जाते हैं। तीसरी पंक्ति के कोष्ठक दूसरी पंक्ति के बीच के अंक 5 से भरने शुरू किये जाते हैं / बाकी के कोष्ठक आदिम अंक 1, 2, 3 तथा 4 से भरे जाते हैं। चौथी पंक्ति का प्रथम कोष्ठक तीसरी पंक्ति के बीच के अंक 2 से भरा जाना शुरू किया जाता है। 5 तक पहुँचने के बाद फिर 1 से भरती होती है। पाँचवीं पंक्ति का प्रथम कोष्ठक चौथी पंक्ति के बीच के अंक 4 से भरा जाना प्रारम्भ किया जाता है। पांच तक पहुंचने के बाद फिर बाकी अंक 1 से शुरू कर भरे जाते हैं। इस यन्त्र के भरने में विशेषतः यह बात ध्यान में रखने की है--प्रत्येक पंक्ति के प्रथम कोष्ठक का भराव पिछली पंक्ति के मध्य के कोष्ठक के अंक से शुरू किया जाना चाहिए। इस यन्त्र की प्रत्येक पंक्ति का योग एक समान-पन्द्रह होता है / --यन्त्र यह यन्त्र ऊपर उल्लिखित लघुसर्वतोभद्र प्रतिमा के तपःक्रम का सूचक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org