________________ 26] [औपपातिकसूत्र कई अक्षीणमहानसिक-ऐसे थे, जो जिस घर से भिक्षा ले आएं, उस घर की बची हुई भोज्य सामग्नी जब तक भिक्षा देनेवाला स्वयं भोजन न कर ले, तब तक लाख मनुष्यों को भोजन करा देने पर भी समाप्त नहीं होती। कई ऋजुमति' तथा कई विपुलमति' मनःपर्यवज्ञान के धारक थे। कई विकुर्वणा-भिन्न-भिन्न रूप बना-लेने की शक्ति से युक्त थे। कई चारण-गति-सम्बन्धों विशिष्ट क्षमता लिये हुए थे। कई विद्याधर प्रज्ञप्ति आदि विद्यानों के धारक थे। कई आकाशातिपाती-आकाशगामिनी शक्ति-सम्पन्न थे अथवा आकाश से हिरण्य प्रादि इष्ट तथा अनिष्ट पदार्थों की वर्षा कराने का जिनमें सामर्थ्य था अथवा आकाशातिवादी-आकाश आदि अमूर्त पदार्थों को सिद्ध करने में जो समर्थ थे। ___ कई कनकावली तप करते थे। कई एकावली तप करने वाले थे। कई लघुसिंहनिष्क्रीडित तप करने वाले थे तथा कई महासिंहनिष्क्रीडित तप करने में संलग्न थे। कई भद्रप्रतिमा, महाभद्रप्रतिमा, सर्वतोभद्रप्रतिमा तथा प्रायंबिल वर्द्धमान तप करते थे। कई एकमासिक भिक्षुप्रतिमा, इसी प्रकार (द्वैमासिक भिक्षुप्रतिमा, त्रैमासिक भिक्षुप्रतिमा, चातुर्मासिक भिक्षुप्रतिमा, पाञ्चमासिक भिक्षुप्रतिमा, पाण्मासिक भिक्षुप्रतिमा, तथा) साप्तमासिक भिक्षुप्रतिमा ग्रहण किये हुए थे। कई प्रथम सप्तराविन्दिवा-सात रात दिन की भिक्षुप्रतिमा, (कई द्वितीय सप्तरात्रिदिवा भिक्षप्रतिमा) तथा कई ततीय सप्तराविन्दिवा भिक्षप्रतिमा के धारक थे एक रातदिन को भिक्षुप्रतिमा ग्रहण किये हुए थे। कई सप्तसप्तमिका- सात-सात दिनों की सात इकाइयों या सप्ताहों की भिक्षुप्रतिमा के धारक थे। कई अष्ट अष्टमिका-पाठ-पाठ दिनों की पाठ इकाइयों की भिक्षुप्रतिमा के धारक थे। कई नवनवमिका नौ-नौ दिनों की नौ इकाइयों की भिक्षुप्रतिमा के धारक थे / कई दशदशमिका-दश-दश दिनों की दश इकाइयों की भिक्षुप्रतिमा के धारक थे। कई लघुमोकप्रतिमा, कई यवमध्यचन्द्रप्रतिमा तथा कई वज्रमध्य चन्द्रप्रतिमा के धारक थे। विवेचन- तपश्चर्या के बारह भेदों में पहला अनशन है / अनशन का अर्थ तीन या चार पाहारों का त्याग करना है। चारों प्राहारों का त्याग कर देने पर कुछ नहीं लिया जा सकता / तीन आहारों के त्याग में केवल प्रासुक पानी लिया जा सकता है। इसकी अवधि कम से कम एक दिन (दिन-रात) है, अधिक से अधिक छह मास है / समाधिमरणकालीन अनशन जीवनपर्यन्त होता है। तपश्चर्या से संचित कर्म निर्जीर्ण होते हैं-कटते हैं। ज्यों-ज्यों कर्मों का निर्जरण होता जाता समनस्क जीवों के मत को अर्थात् मन की चिन्तन के अनुरूप होने वाली पर्यायों को सामान्य रूप से जिसके द्वारा जाना जाता है, वर ऋजुमति मनःपर्यवज्ञान कहा जाता है। समनस्क जीवों के द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव आदि अपेक्षाओं से सविशेष रूप में मन अर्थात मानसिक चिन्तन के अनुरूप होने वाली पर्यायों को जिसके द्वारा जाना जाता है, उसे विपुलमति मनःपर्यवज्ञान कहा जाता है। अनशन, अवमौदर्य-ऊनोदरी, वत्तिपरिसंख्यान, रसपरित्याग, विविक्तशय्यासन, कायक्लेश, प्रायश्चित्त, विनय, वैयावत्य, स्वाध्याय, व्युत्सर्ग तथा ध्यान / -तत्त्वार्थसूत्र 9.19-20 अशन, खाद्य, स्वाद्य / अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org