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________________ ज्ञानी, शक्तिधर, तपस्वी] [25 सत्तराईदियभिक्खुपडिम पडिवण्णा, अहोराइंदियं भिक्खपडिम पडिवण्णा, एक्कराइंदियं भिक्खुपडिमं पडिवण्णा, सत्तसत्तमियं भिक्खुपडिम, अप्रमियं भिक्खुपडिम, णवणवमियं भिक्खुपडिम, वसदसमिय भिक्खुपडिम, खुड्डियं मोयपडिम पडिवण्णा, महल्लियं मोयपडिम पडिवण्णा, जवमझ चंदपडिमं पडिवण्णा, वइरमशं चंपरिमं पडिवण्णा संजमेण, तवसा अप्पाणं भावमाणा विहरति / / २४-—उस समय श्रमण भगवान महावीर के अन्तेवासी बहुत से निर्ग्रन्थ संयम तथा तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरण करते थे। उन में कई मतिज्ञानी (श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मनःपर्यवज्ञानी) तथा केवलज्ञानी थे। अर्थात् कई मति तथा श्रुत, कई मति, श्रुत तथा अवधि, या मति, श्रुत एवं मनःपर्यव, कई भति, श्रुत, अर्वाध तथा मनःपर्यव—यों दो, तीन, चार ज्ञानों के धारक एवं कई केवलज्ञान के धारक थे। कई मनोबली–मनोबल या मन:-स्थिरता के धारक, वचनबली-प्रतिज्ञात प्राशय के निर्वाहक या परपक्ष को क्षुभित करने में सक्षम वचन-शक्ति के धारक तथा कायबली-भूख, प्यास, सर्दी, गर्मी प्रादि प्रतिकल शारीरिक स्थितियों को अग्लान भाव से सहने में समर्थ थे। अर्थात् कइयों में मनोबल, वचनबल तथा कायबल-तीनों का वैशिष्टय था, कइयों में वचनबल तथा कायबलदो का वैशिष्टय था और कइयों में कायबल का वैशिष्टय था)। कई मन से शाप-अपकार तथा अनग्रह-उपकार करने का सामर्थ्य रखते थे, कई वचन द्वारा अपकार एवं उपकार करने में सक्षम थे तथा कई शरीर द्वारा अपकार व उपकार करने में समर्थ थे। कई खेलौषधिप्राप्त खंखार से रोग मिटाने की शक्ति से युक्त थे। कई शरीर के मैल, मूत्रबिन्दु, विष्ठा तथा हाथ आदि के स्पर्श से रोग मिटा देने की विशेष शक्ति प्राप्त किये हुए थे / कई ऐसे थे, जिनके बाल, नाखन, रोम, मल आदि सभी औषधि रूप थे- वे इन से रोग मिटा देने की क्षमता लिये हुए थे। (ये लब्धिजन्य विशेषताएँ थीं)। ___कई कोष्ठबुद्धि-कुशूल या कोठार में भरे हुए सुरक्षित अन्न की तरह प्राप्त सूत्रार्थ को अपने में ज्यों का त्यों धारण किये रहने की बुद्धिवाले थे। कई बोजबुद्धि-विशाल वृक्ष को उत्पन्न करने वाले बीज की तरह विस्तीर्ण, विविध अर्थ प्रस्तुत करनेवाली बुद्धि से युक्त थे। कई पटबुद्धिविशिष्ट वक्तृत्व रूपी वनस्पति से प्रस्फुटित विविध, प्रचुर सूत्रार्थ रूपी पुष्पों और फलों को संग्रहीत करने में समर्थ बुद्धि लिये हुए थे। कई पदानुसारी—सूत्र के एक अवयव या पद के ज्ञात होने पर उसके अनुरूप सैकड़ों पदों का अनुसरण करने की बुद्धि-लिये हुए थे। कई संभिन्नश्रोता-बहुत प्रकार के भिन्न-भिन्न शब्दों को, जो अलग-अलग बोले जा रहे हों, एक साथ सुनकर स्वायत्त करने की क्षमता लिये हुए थे। अथवा जिनकी सभी इन्द्रियाँ शब्द ग्रहण में समक्ष थीं-कानों के अतिरिक्त जिनकी दूसरी इन्द्रियों में भी शब्दग्नाहिता की विशेषता थी। ____ कई क्षीरास्रक -दूध के समान मधुर, श्रोताओं के श्रवणेन्द्रिय और मन को सुहावने लगने वाले वचन बोलते थे। कई मध्वास्रव ऐसे थे, जिनके वचन मधु---शहद के समान सर्वदोषोपशामक तथा आह्लादजनक थे / कई सपि प्रास्रव-थे, जो अपने वचनों द्वारा घृत की तरह स्निग्धता उत्पन्न करने वाले थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003480
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1992
Total Pages242
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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