________________ लिए स्रोत रूप में रहा है। ऐसा सुक्ष्म और पूर्ण वर्णन संस्कृत-साहित्य में भी कम देखने को मिलता है। संस्कृति और समाज की दृष्टि से तथा तत्काल में प्रचलित विभिन्न प्रात्मसाधना-पद्धतियों को समझने की दृष्टि से भी इस पागम का महत्त्व है। इसमें धार्मिक और नैतिक मूल्यों की स्थापना हुई है। भाषा की दृष्टि से प्रस्तुत प्रागम उपमा-बहुल, समास-बहुल और विशेषण-बहुल है। इसमें पहले प्रकरण की भापा कठिन है तो दूसरे प्रकरण की भाषा बहुत ही सरल है। आगम के अन्त में तो बहत ही सरल भाषा है। प्रस्तुत प्रागम में आये हए शब्दों के प्रयोग कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी प्रायः ज्यों के त्यों मिलते हैं। उदाहरण के रूप में प्रस्तुत प्रागम में धूसखोर के लिए प्रयुक्त 'उक्कोडिय' जिसका संस्कृत रूप "उत्कोचक" है / कौटिल्य-अर्थशास्त्र में भी इसी अर्थ में पाया है। औषपातिक में कुणिक राजा के प्रसंग में बताया गया है कि वह महेन्द्र और मलय पर्वत की तरह उन्नत कुल में समुत्पन्न हुआ था।३६ कौटिलीय अर्थशास्त्र में मलय और महेन्द्र पर्वत का वर्णन है / महेन्द्रपर्वत के मोती और मलय पर्वत के चन्दन-वृक्ष बहत ही श्रेष्ठ होते हैं / 140 औपपातिक में 'अर्गला' का नाम 'इन्द्रकील' आया है। 141 तो कोटिलीय अर्थशास्त्र में भी अर्गला के अर्थ में इन्द्रकील शब्द प्रयुक्त है। 182 इस तरह प्रस्तुत प्रागम में आये हुए अनेक शब्दों की तुलना कौटिल्य-अर्थशास्त्र से की जा सकती है। इससे यह स्पष्ट है कि प्रस्तुत आगम की रचना उससे बहुत पहले हुई / जहाँ तक भाषा का प्रश्न है, प्रारम्भ की भाषा कठिन व समासयुक्त है तो बाद की भाषा सरल है। किन्तु विषय के अनुरूप भाषा कठिन और सरल होती है, इसलिए इसे दोनों अध्यायों को अलग-अलग समय की रचना मानना उपयुक्त नहीं है। हमारे अपने अभिमतानुसार यह सम्पूर्ण आगम एक ही समय की रचना है। व्याख्या-साहित्य प्रोपपातिक सूत्र का विषय सरल होने के कारण इस पर नियुक्ति, भाष्य या चूणि साहित्य की संरचना नहीं की गई, केवल नवांगी टीकाकार आचार्य अभयदेव ने इस पर संस्कृत भाषा में सर्वप्रथम टीका लिखी। यह टीका शब्दार्थ प्रधान है। टीका में सर्वप्रथम आचार्य ने भगवान महावीर को नमस्कार किया है तथा औपपातिक का अर्थ करते हए लिखा है कि उपपात का अर्थ है-देवों और नारकों में जन्म लेना व सिद्धि गमन करना। उपपात सम्बन्धी वर्णन होने से इस पागम का नाम 'प्रोपपातिक' है। टीका में नट, नर्तक, जल्ल, मल्ल, मौष्टिक, विडम्बक, कथक, प्लवक, लासक, प्राख्यायक, प्रभृति अनेक महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक, सामाजिक एवं प्रशासन विषयक शास्त्रीय शब्दों का अर्थ स्पष्ट किया गया है। वृत्ति (टीका] 138. कोटिलीय अर्थशास्त्र, अधिकरण 4, अध्याय 4 / 10. 139. प्रोपपातिक 140. कोटिलीय अर्थशास्त्र, अधिकरण 2, अध्याय 1112. 141. औषपातिक 142. कौटिलीय अर्थशास्त्र, अधिकरण 2, अध्याय 3 / 26. [ 38] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org