________________ शेष पांच निर्वाण के पश्चात् हुए।१२६ इनका अस्तित्व-काल श्रमण भगवान महावीर के कैवल्य प्राप्ति के चौदह वर्ष से निर्वाण के पश्चात पांच सौ चौरासी वर्ष तक का है। 27 1. बहुरत-भगवान् महावीर के कैवल्य प्रप्ति के चौदह वर्ष पश्चात् श्रावस्ती में बहुरतवाद की उत्पत्ति हुई / 125 इसके प्ररूपक जमाली थे। बहुरतवादी कार्य की निष्पत्ति में दीर्घकाल की अपेक्षा मानते हैं / बह क्रियमाण को कृत नहीं मानते, अपितु वस्तु के पूर्ण निष्पन्न होने पर ही उसका अस्तित्व स्वीकार करते हैं। जीवप्रादेशिक-- भगवान महावीर के कैवल्य-प्राप्ति के सोलह वर्ष पश्चात् ऋषभपुर 26 में जीवप्रादेशिकवाद की उत्पत्ति हुई।१३• इसके प्रवर्तक तिष्यगुप्त थे। जीव के असंख्य प्रदेश हैं, परन्तु जीवप्रादेशिक मतानुसारी जीव के चरम प्रदेश को ही जीव मानते हैं, शेष प्रदेशों को नहीं। 3. अव्यक्तिक-- भगवान महावीर के परिनिर्वाण के दो सौ चौदह वर्ष पश्चात् श्वेताम्बिका नगरी में अव्यक्तवाद की उत्पत्ति हुई।१३१ इसके प्रवर्तक प्राचार्य आसाढ़ के शिष्य थे / अव्यक्तवादी ये शिष्य अनेक थे / अतएव उनके नामों का उल्लेख उपलब्ध नहीं है। मात्र उनके पूर्वावस्था के गुरु का नामोल्लेख किया गया है। नवांगी टीकाकार ने भी इस आशय का संकेत किया है।३२ 4. सामुच्छेदिक-भगवान महावीर के परिनिर्वाण के दो सौ बीस वर्ष के पश्चात् मिथिलापुरी में समुच्छेदवाद की उत्पत्ति हुई 1933 इनके प्रवर्तक प्राचार्य अश्वमित्र थे। ये प्रत्येक पदार्थ का सम्पूर्ण विनाश मानते हैं, एवं एकान्त समुच्छेद का निरूपण करते हैं। ५.क्रिय श्रमण भगवान महावीर के परिनिर्वाण के दो सौ अद्राईस वर्ष पश्चात उल्लुकातीर नगर 126. णाणुष्पत्तीय दुदे, उप्पण्णा णिचुए सेसा। -अावश्यक नियुक्ति, गाथा-७८४. 127. चोद्दस सोलह रावासा, चोदस बीसुत्तरा य दोणिसया / अट्ठावीसा य दुवे, पंचेव सया उ चोयाला / / पंचलया चलसीया................................... / -पावश्यकनियुक्ति, गाथा-७९३-७८४, 128. उदस वासाणि तया जिणेण उप्पाडियस्स नाणस्स / तो बहुरयाण दिट्ठी सावत्थीए समुप्पन्ना / --प्रावश्यक भाष्य, गाथा-१२५. 129. ऋषभपुरं राजगृहस्याद्याह्वा। --प्रावश्यकनियुक्ति दीपिका, पत्र-१४३. 130. सोलसवासाणि तया जिणेण उप्पाडियस्स नाणस्स / जीवपएसिदिट्ठी उसभपुरम्मि समुप्पन्ना // -आवश्यकभाष्य गाथा, 127. 131. चउदस दो वाससया तइया सिद्धि गयस्स वीरस्स / प्रबत्तगाण दिट्ठी, सेअबिमाए समुप्पन्ना || -यावश्यक भाष्य, गाथा-१२९. 132. सोऽमव्यक्तमतधर्माचार्यो, न चायं तन्मतप्ररूपकत्वेन किन्तु प्रागवस्थायामिति / ---स्थानांग वृति, पत्र 391. 133. वीसा दो वाससया तइया सिद्धि मयस्स वीरस्स / सामुच्छेदिट्री, मिहिलपुरीए समुप्पप्ना // --प्रावश्यक भाष्य, गाथा-१३१. [36] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org