________________ .: भीषण ग्रीष्म ऋतु में जल प्राप्त होने पर भी उन्हें कोई व्यक्ति देने वाला न होने से सात सौ शिष्यों ने अदत्त ग्रहण नहीं किया और संथारा कर शरीर का परित्याग किया। अम्बड़ और उसके शिष्य भगवान् महावीर के प्रति पूर्ण निष्ठावान थे / अम्बड़ अवधिज्ञानी भी था। वह प्रौद्देशिक, नैमित्तिक आहार आदि नहीं लेता था। प्राजीवक श्रमण 62. दुघरतरिया--एक घर में शिक्षा ग्रहण कर उसके पश्चात् दो घरों से भिक्षा न लेकर तृतीय घर से भिक्षा लेने वाले / 63. तिघरंतरिया--एक घर से भिक्षा ग्रहण कर तीन घर छोड़ कर भिक्षा लेने वाले। 64. सत्तघरंतरिया-एक घर से भिक्षा ग्रहण कर सात घर छोड़ कर भिक्षा लेने वाले / 65. उप्पलबेटिया--कमल के डंठल खाकर रहने वाले / 66. घरसमुदाणिय-प्रत्येक घर से भिक्षा ग्रहण करने वाले / 67. विजुअंतरिया---विजली गिरने के समय भिक्षा न लेने वाले / 68, उडियसमण-किसी बड़े मिट्टी के बर्तन में बैठ कर तप करने वाले / प्राजीवक मत का संस्थापक गोशालक था / भगवती सूत्र'२२ के अनुसार वह महावीर के साथ दीर्घकाल तक रहा था। वह पाठ महानिमित्तों का ज्ञाता था और उसके श्रमण उग्र तपस्वी थे / 124 अन्य श्रमण 69. अत्त कोसिय-आत्म-प्रशंसा करने वाले / 70. परिवाइय--पर-निन्दा करने वाले / भगवती 125 में अवर्णवादी को किल्विषक कहा है। 71. भूइकम्मिय-ज्वरग्रस्त लोगों को भूति [राख] देकर नीरोग करने वाले / 72. भुज्जो भुज्जो कोउयकारक-बार-बार सौभाग्य वृद्धि के लिए कौतुक, स्नानादि करने वाले / सात निव विचार का इतिहास जितना पुराना है उतना ही पुराना है विचार-भेद का इतिहास / विचार व्यक्ति की उपज है। वह संघ में रूढ होने के बाद संघीय कहलाता है। सुदीर्घकालीन परम्परा में विचार-भेद होना असम्भव नहीं है। जैन परम्परा में भी विचार-भेद हुए हैं। जो जैन धर्मसंघ से सर्वथा पृथक् हो गए, उन श्रमणों का यहाँ उल्लेख नहीं है। यहां केवल उनका उल्लेख है, जिनका किसी एक विषय में मत-भेद हुआ, जो भगवान महावीर के शासन से पथक हए, पर जिन्होंने अन्य धर्म को स्वीकार नहीं किया। इसलिए वे जैन-शासन के एक विषय के अपलाप करने वाले निह्नव कहलाये / वे सात हैं। उनमें से दो भगवान् महावीर के कैवल्य-प्राप्ति के बाद हुए और 122. भगवती सूत्र, शतक 15 बां 123. पंचकल्प चूणि 124. (क) स्थानांग---४।३०९ (ख) हिस्ट्री एण्ड डाक्ट्रीन्स प्राफ द प्राजीविकाज 125. भगवती सूत्र, 12. ..ए. एल. वाशम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org