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________________ को टीका के अनुसार वृद्ध अर्थात् तापस, श्रावक अर्थात् ब्राह्मण / तापसों को वृद्ध इसलिए कहा गया है कि समग्र तीथिकों की उत्पत्ति भगवान् ऋषभदेव की प्रव्रज्या के पश्चात् हई थी। उनमें सर्वप्रथम तापस-सांख्यों का प्रादुर्भाव हुआ था, अत: वे वृद्ध कहलाये / श्रमण भगवान् महावीर के समय तीन सौ तिरेसठ पाखण्ड-मत प्रचलित थे। उन्हीं अन्य तीर्थों या तैथिकों में वृद्ध श्रावक शब्द भी व्यवहृत हुमा है। ज्ञाताधर्मकथा एवं अंगुत्तरनिकाय में भी यह शब्द प्रयुक्त हमा है। अनुयोगद्वार की टीका में भी वृद्ध का अर्थ तापस किया है। कहीं पर 'बुद्धश्रावक' यह शब्द एक कर दिया गया है और कहीं पर दोनों को पृथक्-पृथक् किया गया है। हमारी दृष्टि से दोनों को पृथक् करने की अावश्यकता नहीं है। वृद्धश्रावक का अर्थ ब्राह्मण उपयुक्त प्रतीत होता है। यहाँ पर वृद्ध और श्रावक शब्द जैन परम्परा से सम्बन्धित नहीं है। यह तो ब्राह्मणों का ही वाचक है। 8. भावक-धर्म-शास्त्रों को श्रवण करने वाला ब्राह्मण / 1 ये पाठों प्रकार के साधु दूध-दही, मक्खन-घृत, तेल, गुड़, मधु, मद्य और मांस का भक्षण नहीं करते थे। केवल सरसों का तेल उपयोग में लेते थे। गंगातट नियासी वानप्रस्थी तापस 9. होत्तिय-- अग्निहोत्र करने वाले तापस / 10. पोत्तिय-वस्त्रधारी।। 11. कोत्तिय-भूमि पर सोने वाले। 12. जण्णई- यज्ञ करने वाले / 13. सड्ढई-श्रद्धाशील / 14. थालई-सब सामान लेकर चलने वाले / 15. हुंबउट्ठ-कुण्डी लेकर चलने वाले। 16. दंतुक्खलिय-दांतों से चबाकर खाने वाले / इसका उल्लेख रामायण में प्राप्त है। दीघनिकाय अट्ठकथा में भी इस सम्बन्ध में उल्लेख है। 17. उम्मज्जक-उन्मज्जन मात्र से स्नान करने वाले / अर्थात कानों तक पानी में जाकर स्नान करने वाले। 87. अण्णतीथिकाश्चरक-परिव्राजक-शाक्याजीवक-बद्धश्रावकप्रभृतयः / -निशीथ सभाष्यचूणि, भाग-२, पृ. 118. 88. ज्ञाताधर्मकथा, अध्य. 15 वां, सू. 1. 89, अंगुत्तरनिकाय हिन्दी अनुवाद भाग 2, पृ. 452. 90. अनुयोगद्वार सुत्र-२० की टीका। 91. देखिए विस्तार के साथ ज्ञातासूत्र प्रस्तावना पृ. 37. -- देवेन्द्रमुनि 92. रामायण-३॥६॥३. 93. दीघनिकाय अट्ठकथा 1, पृ. 270 / 14. कर्णदधने जले स्थित्वा, तपः कुर्वन प्रवर्तते / उन्मज्जकः स विज्ञेयस्तापसो लोकपजितः / / --अभिधानवाचस्पति [30] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003480
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1992
Total Pages242
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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