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________________ दिलचस्प भी है। इसमें वदिक और श्रमण परम्परा के अनेक परिवाजकों, तापसों व श्रमणों का उल्लेख है। उनकी प्राचार संहिता भी संक्षेप में दी गई है। उन परियाजकों का संक्षेप में परिचय इस प्रकार है 1. गौतम---ये अपने पास एक नन्हा सा बैल' रखते थे, जिसके गले में कोड़ियों की माला होती, जो संकेत से अन्य व्यक्तियों के चरण स्पर्श करता / इस बैल को साथ रख कर यह साधु भिक्षा मांगा करते थे। अंगुत्तरनिकाय में भी इस प्रकार के साधनों का उल्लेख है। 2. गोवतिक-गोव्रत रखने वाले / गाय के साथ ही ये परिभ्रमण करते / जब गाय गाँव से बाहर जाती तो ये भी उसके साथ जाते / गाय चारा चरती तो ये भी चरते और गाय के पानी पीने पर ये भी पानी पीते। जब गाय सोती तो ये सोते / गाय की भाँति ही घास और पत्तों का ये पाहार करते भी इन गोव्रतिक साधुओं का उल्लेख मिलता है। 5 . 3. गहिधर्म-ये अतिथि, देव आदि को दान देकर परम ग्राह्लादित होते थे और अपने आपको गृहस्थ धर्म का सही रूप से पालन करने वाला मानते थे / धचिन्तक-ये धर्म-शास्त्र के पठन और चिन्तन में तल्लीन रहते थे। अनुयोगद्वारा की टीका में याज्ञवल्क्य प्रभृति ऋषियों द्वारा निर्मित धर्म-संहिताओं का चिन्तन करने वालों को धर्म-चिन्तक कहा है। अविरुद्ध-देवता, राजा, माता-पिता, पशु और पक्षियों की समान रूप से भक्ति करने वाले अबिरुद्ध साधु कहलाते थे। ये सभी को नमस्कार करते थे, इसलिए विनयबादी भी कहलाते थे। आवश्यकनियुक्ति, आवश्यकचूर्णि, में इनका उल्लेख है। भगवतीसूत्र के अनुसार 4 ताम्रलिप्ति के मौर्य-पुत्र तामलि ने यही प्रणामा-प्रवज्या ग्रहण की थी। अंगुत्तरनिकाय८५ में भी अविरुद्धकों का वर्णन है। 6. विरुद्ध -ये पुण्य-पाप, स्वर्ग-नरक नहीं मानते थे। ये प्रक्रियावादी थे। 7. वद्ध-तापस लोग प्रायः वृद्धावस्था में संन्यास लेते थे। इसलिए ये वद्ध कहलाते थे। प्रोपपातिक 78. अंगुत्तरनिकाय-३, पृ. 726 79. मज्झिमनिकाय-३, पृ. 387. 50. ललितविस्तर, पृ. 248. 11. अनुयोगद्वार सूत्र, 20. 82. आवश्यकनियुक्ति, 494. 83. पावश्यकचूणि, पृ. 298. 84. भगवती सूत्र, 3 // 1. 85. अंगुत्तरनिकाय-३, पृ. 276. 26. वृद्धाः तापसा वृद्धकाल एवं दीक्षाभ्युपगमात्, आदि देवकालोत्पन्नत्वेन च सकललिङ्गिनामाद्यत्वात, श्रावकाधर्मशास्त्रश्रवणाद् ब्राह्मणाः अथवा वृद्धश्रावका ब्राह्मणाः / -प्रौपयातिक सूत्र 38 वृ. . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003480
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1992
Total Pages242
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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