________________ श्रीकल्याण विजय गणि के अभिमतानुसार चम्पा पटना से पूर्व कुछ दक्षिण में] लगभग सौ कोश पर थी, जिसे आज चम्पकमाला कहते हैं। यह स्थान भागलपुर से तीन मील दूर पश्चिम में है। 27 चम्पा उस युग में व्यापार का प्रमुख केन्द्र था, जहां पर माल लेने के लिए दूर-दूर से व्यापारी आते थे। चम्पा के व्यापारी भी माल लेकर के मिथिला, अहिच्छत्रा और पिण्ड [चिकाकोट और कलिंगपट्टम का एक प्रदेश] प्रादि में व्यापारार्थ जाते थे।२८ चम्पा और मिथिला में साठ योजन का अन्तर था। मझिमनिकाय के अनुसार पूर्ण कस्सप, मक्खलिगोसाल, अजितकेसकम्बलिन, पकूधकच्चायन, सञ्जय बेलद्विपुत्त तथा निम्गन्थनाथपुत्त का वहाँ पर विचरण होता था / 29 जैन इतिहास के अनुसार भगवान महावीर अनेक बार चम्पा नगरी में पधारे थे और उन्होंने 567 ई. पूर्व में तीसरा, 558 ई. पूर्व में बाहरवा और सन् ई पूर्व 544 में छब्बीसवाँ वर्षावास चम्पानगरी में किया था। 30 भगवान महावीर चम्पा के उत्तर-पूर्व में स्थित पूर्णभद्र नामक चैत्य में विराजते थे / प्रस्तुत आगम में चम्पा का विस्तृत वर्णन है। वह वर्णन परवर्ती साहित्यकारों के लिए मूल आधार रहा है। प्राचीन वस्तुकला की दृष्टि से इस वर्णन का अनूठा महत्त्व है। प्राचीन युग में नगरों का निर्माण किस प्रकार होता था, यह इस वर्णन से स्पष्ट है। नगर की शोभा केवल गगनचुम्बी प्रासादों से ही नहीं होती, किन्तु सघन वृक्षों से होती है और वे वृक्ष लहलहाते हैं पानी की सरसब्जता से। इसलिए नगर के साथ ही पूर्णभद्र चैत्य का उल्लेख हुया है। वनखण्ड में विविध प्रकार के वक्ष थे, लताएं थीं और नाना प्रकार के पक्षियों का मधुर कलरव था। सम्राट कुणिक : एक चिन्तन चम्पा का अधिपति कूणिक सम्राट था | कणिक का प्रस्तुत आगम में विस्तार से निरूपण है। वह भगवान महावीर का परम भक्त था। उसकी भक्ति का जीता-जागता चित्र इसमें चित्रित है। उसी तरह कणिक जातशत्रु को बौद्ध परम्परा में भी बुद्ध का परम भक्त माना है। सामञफलसुत्त के अनुसार तथागत बुद्ध के प्रथम दर्शन में ही वह बौद्ध धर्म को स्वीकार करता है / 31 बुद्ध की अस्थियों पर स्तुप बनाने के लिए जब बुद्ध के भग्नावशेष बाँटे जाने लगे, तब अजातशत्रु ने कुशीनारा के मल्लों को कहलाया कि बुद्ध भी क्षत्रिय थे, मैं भी क्षत्रिय है, अतः अवशेषों का एक भाग मुझे मिलना चाहिए / द्रोण विप्र की सलाह से उसे एक अस्थिभाग मिला और उसने उस पर एक स्तूप बनवाया / 32 यह सहज ही जिज्ञासा हो सकती है कि अज्ञातशत्रु कूणिक जैन था या बौद्ध था ? उत्तर में निवेदन है 27. श्रमण भगवान् महावीर, पृ. 369 28. (क) ज्ञातृधर्मकथा, 8, पृ. 97, 9, पृ. 121-15, पृ. 159 (ख) उत्तराध्ययन-२०२ 29. मज्झिमनिकाय, 22 30. भगवान् महावीर का एक अनुशीलन--परिशिष्ट-१-२ देवेन्द्रमुनि 31. एसाहं भन्ते, भगवन्तं शरण गच्छामि धम्मं च भिक्खसंघ च / उपासकं भं भगवा धारेतु अज्जतम्गे पाणपेतं सरणं गतं / -सामञफलसुत्त 32. बुद्धचर्या, पृ. 509 [20] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org