________________ माना है। महाभारत की दृष्टि से चम्पा का प्राचीन नाम 'मालिनी' था / महाराज चम्प ने इसका नाम चम्पा रखा। चम्पा के 'चम्पावती', 'चम्पापुरी', 'चम्पानगर' और 'चम्पामालिनी' आदि नाम प्राप्त होते हैं।२० दीपनिकाय के अनुसार इस महानगरी का निर्माण महागोविन्द ने किया था। 1 चम्पक वृक्षों का बाहुल्य होने के कारण इस नगरी का नाम चम्पा पड़ा हो ! दीघनिकाय के अनुसार चम्पा एक विशालनगरी थी / 22 जातकों में पाये हए वर्णन से यह स्पष्ट है कि चम्पा के चारों ओर एक सुन्दर खाई थी और बहुत सुदृढ प्राचीर था।२३ पालि ग्रन्थों के अनुसार चम्पा में "गग्गरापोखरणी" नामक एक कासार था, जिसका निर्माण गारगरा नामक महारानी ने करवाया था। प्रस्तुत कासार के तट पर चम्पक वृक्षों का एक बहुत ही सुन्दर गुल्म था, जिसके कारण सन्निकट का प्रदेश अत्यन्त सौरभयुक्त था। तथागत बुद्ध अब भी चम्पा में आते थे, वे गागरापोखरणी के तट पर ही रुकते थे।२४ इस महानगरी की रमणीयता के कारण ही आनन्द ने गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के उपयुक्त नगरों में इस नमरी की परिकल्पना की थी। तथागत बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित होने के कारण बौद्धयात्री समय-समय पर इसी नगरी के अवलोकनार्थ प्राये। चीनी यात्री फाहियान ने चम्पा का वर्णन करते हुए लिखा है, चम्पा नगर पाटलीपुत्र से अठारह योजन की दूरी पर स्थित था। उसके अनुसार चम्या गंगा नदी के दक्षिण तट पर बसा हुआ था। चीनी यात्रियों के समय चम्पा नगरी का ह्रास प्रारम्भ हो गया था। उसने वहाँ पर स्थित विहारों का उल्लेख किया है / 25 ट्वानच्चांग भारतीय सांस्कृतिक केन्द्रों का निरीक्षण करता हुआ चम्पा पहुँचा था / वह इरण पर्वत से तीन सौ ली [पचास मील की दूरी समाप्त कर चम्पा पहुंचा था। उसके अभिमतानुसार चम्पा देश की परिधि चार सौ "ली'। [सत्तर मील] थी और नगर की परिधि चालीस ली [सात मील] वह भी चम्पा को गंगा के दक्षिण तट पर अवस्थित मानता है / इसके आगमन के समय यह नगरी बहुत कुछ विनष्ट हो चुकी थी। स्थानांग में जिन दश महानगरियों का उल्लेख है, उनमें चम्पा भी एक है। यह राजधानी थी। बारहवें तीर्थंकर बासुपूज्य की यह जन्मभूमि थी। आचार्य शय्यंभव ने दशवकालिक सूत्र की रचना इस नगरी में की थी। 'विविध तीर्थ कल्प' के अनुसार सम्राट् श्रेणिक के निधन के पश्चात् सम्राट् कुणिक को राजगह में रहना अच्छा न लगा। एक स्थान पर चम्पा के सुन्दर उद्यान को देखकर चम्पानगर बसाया / 19. ट्रैवेल्स ऑफ फाहियान, पृ. 65 20. ला. बी. सी., इण्डोलॉजिकल स्टडीज, पृ. 49 21. "दन्तपुर कलिङ्गानमस्सकानाञ्च पोतनम् / माहिस्सती अवन्तीनम् सोवीराञ्च रोरुकम् // निथला च विदेहानम् चम्पा अङ्गसु मापिता / वाराणसी च कासीनम् एते गोविन्द-मापितेती // -दीघनिकाय, 19, 36 ! 22. दीघनिकाय-२-१४६ 23. जातक-४१४५४ 24. मललसेकर-२१७२४ 25. लेग्गे, फाहियान-१०० 26. विविध तीर्थ कल्प,-पृ. 65 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org