________________ विशेषता है कि इसमें जो विषय चर्चित किये गये हैं, वे विषय पूर्ण विस्तार के साथ चचित हुए हैं। यही कारण है कि भगवती प्रादि अंग-प्रागमों में प्रस्तुत सुंत्र को देखने का सूचन किया गया, जो इस आगम के वर्णन की मौलिकता सिद्ध करता है। श्रमण भगवान महावीर का आनख-शिख समस्त अंगोपांगों का विशद वर्णन इसमें किया गया है, वैसा वर्णन अन्य किसी भी आगम में नहीं है। भगवान महावीर की शरीर-सम्पत्ति को जानने के लिए यह प्रागम एकमात्र आधार है। इसमें भगवान के समवसरण का सजीव चित्रण हुमा है / भगवान् महावीर की उपदेश-विधि भी इसमें सुरक्षित है। चम्पा नगरी : एक विश्लेषण चम्पा अंगदेश की राजधानी थी। अथर्ववेद में अंग का उल्लेख है।११ गोपथ ब्राह्मण में भी अंग और मगध का एक साथ उल्लेख हुआ है / 12 पाणिनीय अष्टाध्यायी में भी अंग का नाम बंग, कलिंग और पुण्ड आदि के नामों के साथ उल्लिखित है। 13 रामायण में अंग शब्द की व्युत्पत्ति करते हए एक आख्यायिका दी है।१४ शिव की क्रोधाग्नि से बचने के लिए कामदेव इस प्रदेश में भागकर पाया। अंग का परित्याग कर वह अनंग हो गया। इस घटना से प्रस्तुत क्षेत्र का नाम अंग हुना। जालकों से यह भी परिज्ञात होता है कि तथागत बुद्ध से पूर्व राज्यसत्ता के लिए मगध और अंग में परस्पर संघर्ष होता था / बुद्ध के समय अंग मगध का ही एक विभाग था। राजा श्रेणिक अंग और मगध इन दोनों का अधिपति था। त्रिपिटक-साहित्य में अंग और मगध को साथ में रखकर 'अंग-मगधा द्वन्द्व समास के रूप में प्रयुक्त हआ है। 'चम्पेय जातक' के अनुसार चम्पा नदी अंग और मगध इन दोनों का विभाजन करती थी, जिसके पूर्व और पश्चिम में दोनों जनपद बसे हुए थे। अंग जनपद की पूर्वी सीमा राजप्रासादों की पहाड़ियाँ, उत्तरी सीमा कोसी नदी, दक्षिण में उसका समुद्र तक विस्तार 'था। पाजिटर ने पूणिया जिले के पश्चिमी भाग को अंग जनपद के अन्तर्गत माना है।१७ महाभारत के अनुसार अंग नामक राजा के नाम पर जनपद का नाम अंग पड़ा / कनिंघम ने लिखा है--- भागलपुर से ठीक चौबीस मील पर पत्थर घाट है। इसके आस-पास चम्पा की अवस्थिति होनी चाहिए। इसके पास ही पश्चिम की ओर एक बड़ा गाँव है, जिसे चम्पानगर कहते हैं और एक छोटा सा गाँव है, जिसे चम्पापुर कहते हैं, सम्भव है, ये दोनों गाँव प्राचीन राजधानी 'चम्पा' की सही स्थिति को प्रकट करते हों।" 58 फाहियान ने चम्पा को पाटलीपुत्र से अठारह योजन पूर्व दिशा में गंगा के दक्षिणी तट पर अवस्थित 11. अथर्ववेद-५-२२-१४, 12. गोपथ ब्राह्मण--२-९. 13. अष्टाध्यायी-४-१-१७० 14. रामायण--४७-१४ 15. जातक, पालिटेक्स्ट-सोसायटी, जिल्द-४, पृ. 454, जिल्द ५वों पृ. 316. जिल्द छठी पृ. 271. . . 16. (क) दीघनिकाय-३१५. ... (ख) मन्झिमनिकाय-२१३१७ (ग) थेरीगाथा-बम्बई विश्वविद्यालय संस्करण, गाथा 110 17. जर्नल ऑब एशियाटिक सोसायटी ऑव बंगाल, सन् 1897 पृ. 95 18. दी एन्शियण्ट ज्योग्राफी आफ इण्डिया, पृ. 546-547 [18] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org