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________________ 158] [औपपातिकसूत्र 4. सामुच्छेदिकवाद- नारक आदि भावों का एकान्ततः प्रतिक्षण समुच्छेद-विनाश होता रहता है / सामुच्छेदिकवाद का ऐसा अभिमत है। इसके प्रवर्तक अश्वमित्र माने जाते हैं।' इसके प्रवर्तन से सम्बद्ध कथानक इस प्रकार है कौण्डिल नामक आचार्य थे। उनके शिष्य का नाम अश्वमित्र था। आचार्य शिष्य को 'पूर्वज्ञान' का अभ्यास करा रहे थे। पर्यायवाद का प्रकरण चल रहा था / पर्याय की एक समयवर्तिता प्रसंगोपात्तरूप में समझा रहे थे / प्रथम समय के नारक समुच्छिन्न-विच्छिन्न-होंगे, दूसरे समय के नारक समुच्छिन्न होंगे। पर्यायात्मक दृष्टि से इसी प्रकार सारे जीव समुच्छिन्न होंगे। अश्वमित्र ने सारे सन्दर्भ को यथार्थरूप में न समझते हुए केवल समुच्छेद या समुच्छिन्त्रता को ही पकड़ लिया। वह दुराग्रही हो गया / उसने सामुच्छेदिकवाद का प्रवर्तन किया। 5. द्वेक्रियवाद-शीतलता और उष्णता आदि की दोनों अनुभूतियाँ एक ही समय में साथ होती हैं, ऐसी मान्यता द्वैक्रियवाद है / गंगाचार्य इसके प्रवर्तक थे / इसके प्रवर्तन से सम्बद्ध कथा इस प्रकार है गङ्ग नामक मुनि धनगुप्त प्राचार्य के शिष्य थे। वे अपने गुरु को वन्दन करने जा रहे थे। मार्ग में उल्लुका नामक नदी पड़ती थी। मुनि जब उसे पार कर रहे थे, उनके सिर पर सूर्य की उष्ण किरणें पड़ रही थीं, पैरों में पानी की शीतलता का अनुभव हो रहा था। मुनि गङ्ग सोचने लगे-आगमों में तो बतलाया है, एक साथ दो क्रियाओं की अनुभूति नहीं होतीं, पर मैं प्रत्यक्ष देख रहा हूँ ऐसा होता है। तभी तो एक ही साथ मुझे शीतलता एवं उष्णता का अनुभव हो रहा है। वे इस विचार में प्राग्रहग्रस्त हो गये। उन्होंने दो क्रियानों का अनुभव एक साथ होने का सिद्धान्त स्थापित किया। 6. राशिकवाद-त्रैराशिकवादी जीव, अजीव तथा नोजीव-जो जीव भी नहीं, अजीव भी नहीं-ऐसी तीन राशियाँ स्वीकार करते हैं / त्रैराशिकवाद के प्रवर्तक प्राचार्य रोहगुप्त थे ! इसके प्रवर्तन की कथा इस प्रकार है-रोहगुप्त अन्तरंजिका नामक नगरी में ठहरे हुए थे। वे अपने गुरु आचार्य श्रीगुप्त को वन्दन करने जा रहे थे। पोदृशाल नामक परिव्राजक अपनी विद्याओं के प्रदर्शन द्वारा लोगों को आश्चर्यान्वित कर रहा था, वाद हेतु सबको चुनौती भी दे रहा था। रोहगुप्त ने पोट्टशाल की चुनौती स्वीकार कर ली। पोट्टशाल वृश्चिकी, सी, मूषिकी आदि विद्याएँ साधे हुए 1. नारकादिभावानां प्रतिक्षणं समुच्छेदं भयं वदन्तीति सामुच्छेदिकाः, अश्वमित्रमतानुसारिणः / ---औपपातिकसूत्र वृत्ति, पत्र 106 2. द्वे क्रिये---शीतवेदनोष्णवेदनादिस्वरूपे एकत्र समये जीवोऽनुभवतीत्येवं वदन्ति ये, ते क्रिया गङ्गाचार्यमतानुवर्तिनः / –औपपातिकसूत्र वृत्ति, पत्र 106 3. त्रीत् राशीन् जीवाजीवनोजीवरूपान् वदन्ति ये, ते नैराशिकाः, रोहगुप्तमतानुसारिणः / –औपपातिकसूत्र वृत्ति, पत्र 106 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003480
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1992
Total Pages242
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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