________________ अम्बर के उत्तरवर्ती मव] [149 गरुलवहं, सगडवहं, जुद्धं, निजुद्धं, जुद्धाइजुद्धं, मुट्ठिजुद्धं, बाहूजुद्धं, लयाजुद्धं, इसत्थं, छरुष्पवाह, धणुम्वेयं, हिरण्णपागं, सुवण्णपागं, वट्टखेड्ड, सुत्ताखेड्डं, गालियाखेड्डं, पत्तच्छेज्जं, कडगच्छेज्जं, सज्जीवं, निज्जीवं, सउणरुयमिति बावत्तरिकलानो सेहावित्ता, सिक्खावेत्ता अम्मापिईणं उवणेहिति / १०७-तब कलाचार्य बालक दृढ़प्रतिज्ञ को लेख एवं गणित से लेकर पक्षिशब्दज्ञान तक बहत्तर कलाएँ सूत्ररूप में--सद्धान्तिक दृष्टि से, अर्थ रूप में व्याख्यात्मक दृष्टि से, करण रूप में प्रयोगात्मक दृष्टि से सधायेंगे, सिखायेंगे- अभ्यास करायेंगे / वे बहत्तर कलाएँ इस प्रकार हैं--- 1. लेख-लेखन-अक्षर विन्यास, तद् विषयक कला, 2. गणित, 3. रूप-भित्ति, पाषाण, वस्त्र, रजत, स्वर्ण, रत्न प्रादि पर विविध प्रकार का चित्रांकन, 4. नाट्य-अभिनय, नाच, 5. गीतगान्धर्व-विद्या--संगीत-विद्या, 6. वाद्य-वीणा, दुन्दुभि, ढोल आदि स्वर एवं ताल सम्बन्धी वाद्य (साज) बजाने की कला, 7. स्वरगत--निषाद, ऋषभ, गान्धार, षड्ज, मध्यम, धैवत तथा पञ्चम– इन सात स्वरों का परिज्ञान, 8. पुष्करगत-मृदंग-वादन की विशेष कला, 9. समताल-गान व ताल के लयात्मक समीकरण का ज्ञान, 10. चूत—जूग्रा खेलने की कला, 11. जनवाद लोगों के साथ वार्तालाप करने की दक्षता अथवा वाद-विवाद करने में निपुणता, 12. पाशक-पासा फेंकने की विशिष्ट कला, 13. अष्टापद-विशेष प्रकार की चूत-क्रीडा, 14. पौरस्कृत्य-नगर की रक्षा, व्यवस्था प्रादि का ज्ञान, (अथवा पुरःकाव्य-पाशुकवित्व-किसी भी विषय पर तत्काल कविता रचने की कला,) 15. उदक-मृत्तिका-जल तथा मिट्टी के मेल से भाण्ड आदि के निर्माण का परिज्ञान, 16. अन्न-विधि--अन्न पैदा करने की दक्षता अथवा भोजन-परिपाक का ज्ञान, 17. पान-विधि-पेय पदार्थों के निष्पादन, प्रयोग आदि का ज्ञान, 18. वस्त्र-विधि-बस्त्र सम्बन्धी ज्ञान, 19. विलेपन-विधिशरीर पर चन्दन, कुंकुम आदि सुगन्धित द्रव्यों के लेप का, मण्डन का ज्ञान, 20. शयन-विधि—शय्या आदि बनाने, सजाने की कला, 21. प्रार्या—ार्या आदि मात्रिक छन्द रचने की कला, 22. प्रहेलिका-गूढ प्राशययुक्त गद्यपद्यात्मक रचना, 23. मागधिका-मगध देश की भाषा-मागधी प्राकृत में काव्य-रचना, 24. गाथा-संस्कृतेतर शौरसेनी, अर्धमागधी, पैशाची आदि प्राकृतों-लोक भाषाओं में प्रार्या आदि छन्दों में रचना करने की कला, 25. गीतिका-गेय काव्य की रचना, गोति, उपगीति आदि छन्दों में रचना, 26. श्लोक-अनुष्टुप् प्रादि छन्दों में रचना, 27. हिरण्य-युक्ति--- रजत-निष्पादन-चांदी बनाने की कला, 28. सवर्ण-यक्ति--सोना बनाने की कला, 29. गन्ध-यूक्तिसुगन्धित पदार्थ तैयार करने की विधि का ज्ञान, 30. चूर्ण-युक्ति-विभिन्न औषधियों द्वारा तान्त्रिक विधि से निर्मित चूर्ण डालकर दूसरे को वश में करना, स्वयं अन्तर्धान हो जाना आदि (विद्याओं) का ज्ञान, 31. प्राभरण-विधि-ग्राभूषण बनाने तथा धारण करने की कला, 32. तरुणी-प्रतिकर्मयुवती-सज्जा की कला, 33. स्त्री-लक्षण-पद्मिनी, हस्तिनी, शंखिनी व चित्रिणी स्त्रियों के लक्षणों का ज्ञान, 34. पुरुष-लक्षण-उत्तम, मध्यम, अधम, आदि पुरुषों के लक्षणों का ज्ञान, अथवा शश आदि पुरुष-भेदों का ज्ञान, 35. हय-लक्षण--अश्व-जातियों, लक्षणों आदि का ज्ञान, 36. गज-लक्षण-- हाथियों के शुभ, अशुभ, आदि लक्षणों को जानकारी, 37. गो-लक्षण --गाय, बैल के लक्षणों का ज्ञान, 38. कुक्कुट-लक्षण-मुर्गे के लक्षणों का ज्ञान, 39. चक्र-लक्षण, 40. छत्र-लक्षण, 41. चर्म-लक्षणढाल आदि चमडे से बनी विशिष्ट वस्तयों के लक्षणों का ज्ञान, 42. दण्ड-लक्षण, 43. असि-लक्षणतलवार की श्रेष्ठता, अश्रेष्ठता का ज्ञान, 44. मणि-लक्षण-रत्न-परीक्षा, 45. काकणी-लक्षण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org