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________________ वानप्रस्यों का उपपात [125 दिलोप ने सपत्नीक गुरु के आश्रम में रहते हुए, जहाँ नन्दिनी थी, उसकी बहुत सेवा की। उसको परम उपास्य देवता और आराध्य मानकर तन मन से उसकी सेवा में राजा और रानी जुट गये / महाकवि ने बड़े सुन्दर शब्दों में लिखा है __ "नन्दिनी जब खड़ी होती, राजा खड़ा होता, जब वह चलती, राजा चलता, जब वह बैठती, राजा बैठता, जब वह पानी पीती. राजा पानी पीता / अधिक क्या, राजा काया की तरह नन्दिनी के पीछे-पीछे चलता।" वृत्तिकार प्राचार्य अभयदेवमूरि ने भी प्रस्तुत सूत्र की व्याख्या में गोव्रत की विशेष रूप से चर्चा की है। उन्होंने लिखा है-- "गायों के गाँव से बाहर निकलने पर गोब्रतिक बाहर निकलते हैं। वे जब चलती हैं, वे चलते हैं अथवा वे जब चरती हैं-घास खाती हैं, वे भोजन करते हैं। वे जब पानी पीती हैं, वे पानी पीते हैं / वे आती हैं, तब वे आते हैं। वे सो जाती हैं, तब वे सोते हैं।" महाकवि कालीदास तथा प्राचार्य अभयदेवसूरि द्वारा प्रकट किये गये भावों की तुलना करने पर दोनों की सन्निकटता स्पष्ट प्रतीत होती है। जैसा प्रस्तुत सूत्र में संकेत है, विनयाश्रित भक्तिवादी उपासना की भी भारतवर्ष में एक विशिष्ट परम्परा रही है। इस परम्परा से सम्बद्ध उपासक हर किसी को विनतभाव से प्रणाम करना अपना धर्म समझते हैं। आज भी यत्र-तत्र ब्रज आदि में कुछ ऐसे व्यक्ति दिखाई देते हैं, जो सभी को प्रणाम करने में तत्पर देखे जाते हैं। वानप्रस्थों का उपपात ७४–से जे इमे गंगाकूलगा वाणपत्था तावसा भवंति, तं जहा-होत्तिया, पोत्तिया, कोत्तिया, जण्णई, सट्टई, थालई, हुंबउट्ठा, दंतुक्खलिया, उम्मज्जगा, सम्मज्जगा, निमज्जगा, संपखाला, दक्खिणकूलगा, उत्तरकूलगा, संखधमगा, कूलधमगा, मिगलुद्धगा, हस्थितावसा, उदंडगा, दिसापोक्खिणो, वाकवासिणो, बिलवासिणो, वेलवासिणो, जलवासिणो, रुक्खमूलिया, अंबुभविखणो, 1. स्थितः स्थितामुञ्चलित: प्रयातां, निषेदुषीमासनबन्धधीर:, जलाभिलाषी जलमाददानां, छायेव तां भूपतिरत्वगच्छत् // --रघुवंशमहाकाव्य 2.6 गोव्रतं येषामस्ति ते गोप्रतिकाः। ते हि गोषु प्रामान्निर्गच्छन्तीषु निर्गच्छन्ति, चरन्तीषु चरन्ति, पिबन्तीसु पिबन्ति, प्रायान्तीष्वायान्ति, शयनासु च शेरेते इति, उक्तं च---- "गावीहि समं निगमपवेससयणासणाइ पकरेंति / भुजंति जहा गावी तिरिक्खवास विहाविता // " –औपपातिकसूत्र वत्ति पत्र 89, 90 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003480
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1992
Total Pages242
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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