________________ पारमाध] प्रापकर्म का बन्ध ६४--जोवे गं भंते ! प्रसंजए अविरए अप्पडिहयपच्चक्खाबपावकम्मे सकिरिए असंबरे एमंस एगंतबाले एगंतसुते पावकम्म अण्हाइ ? हंता प्रहाइ। ६४-भगवन् ! वह जीव, जो असंयत है-जिसने संयम की आराधना नहीं की, जो अविरत है-हिंसा आदि से विरत नहीं है, जिसने प्रत्याख्यान द्वारा पाप-कर्मों को प्रतिहत नहीं किया-सम्यक श्रद्धापूर्वक पापों का त्याग नहीं किया, हल्का नहीं किया, जो सक्रिय - कामिक, वाचिक तथा मानसिक क्रियाओं से युक्त है-क्रियाएँ करता है, जो असंवृत है-संवर रहित है-जिसने इन्द्रियों का संवरण या निरोध नहीं किया, जो एकान्तदंड युक्त है--जो अपने को तथा औरों को पापकर्म द्वारा एकान्ततः-सर्वथा दण्डित करता है, जो एकान्तबाल है-सर्वथा मिथ्या दृष्टि-अज्ञानी है, जो एकान्तसुप्त है-मिथ्यात्व की निद्रा में बिलकुल सोया हुआ है, क्या वह पाप-कर्म से लिप्त होता है-पाप-कर्म का बंध करता है ? हाँ, गौतम ! करता है। ६५-जीवे गं भंते ! असंजए नाव (अविरए, अपरिहवपच्चखावपावकम्मे, सपिरिए, असंबडे, एगंतवंडे एगंतबाले) एससुते मोहणिज्जं पाचकम्म अम्हाइ ?? हता अण्हाइ। ६५-भगवन् ! वह जीव, जो असंयत है--जिसने संयम की आराधना नहीं की, जो अविरत है-हिंसा आदि से विरत नहीं है, जिससे प्रत्याख्यान द्वारा पाप कर्मों को प्रतिहत नहीं किया-सम्यक श्रद्धापूर्वक पापों का त्याग नहीं किया, हलका नहीं किया, जो सक्रिय–कायिक, वाचिक तथा मानसिक क्रियाओं से युक्त है-क्रियाएँ करता है, जो असंवृत है--संवर रहित है --जिसने इन्द्रियों का संवरण या निरोध नहीं किया, जो एकान्तदंडयुक्त है जो अपने को तथा पोरों को पाप कर्म द्वारा एकान्ततःसर्वथा दण्डित करता है, जो एकान्त-बाल है-सर्वदा मिथ्यादृष्टि-अज्ञानी है, जो एकान्त-सुप्त हैमिथ्यात्व की निद्रा में बिलकुल सोया हुआ है, क्या वह मोहनीय पाप कर्म से लिप्त होता है-मोहनीय पाप-कर्म का बंध करता है ? हाँ गौतम ! करता है। ६६-जीवे णं भंते ! मोहणिज्ज कम्मं वेदेमाणे कि मोहणिज्ज कम्मं बंधइ ? वेयणिज्ज काम धा? या! बोहगितजं पिसा बंदर. वनिपि काम , माणस्थ परिममोहमिजं सारेगा मणि बंधार को मोहणिजम संधर। ६६-भगवन् ! क्या जीव मोहनीय कर्म का वेदन-अनुभव करता हुमा मोहनीय कर्म का बंध करता है ? क्या वेदनीय कर्म का बंधः करता है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org