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________________ वर्शन-वन्दन की तैयारी] [95 सेनानायक ने यों राजाज्ञा स्वीकार कर हस्ति-व्यापृत-महावत को बुलाया। बुलाकर उससे कहा-देवानुप्रिय ! भंभसार के पुत्र महाराज कुणिक के लिए प्रधान, उत्तम हाथी सजाकर शीघ्र तैयार करो। घोड़े, हाथी, रज तथा श्रेष्ठ योद्धाओं से परिगठित चतुरंगिणी सेना के तैयार होने की व्यवस्था कराम्रो / फिर मुझे आज्ञा-पालन हो जाने की सूचना करो। ४२तए णं से हत्यिवाउए बलवाउयस्स एयमलै सोच्चा प्राणाए धिणएणं क्यणं पडिसुणेह, पडिसुणित्ता प्राभिसेक्कं हस्थिरयणं छेयायरियउवएसमइकप्पणाविकप्पेहि सुणिउणेहि उज्जलणेवत्थ. हत्थपरिवत्थियं, सुसज्ज धम्मियसण्णद्धबद्धकवइयउप्पीलियकच्छवच्छगेवेयबद्धगलवरभूसणविरायंतं, अहियतेयजुत्तं, सललियवरकण्णपूरविराइयं, पलंबोचूलमहुयरकयंधयारं, चित्तपरिच्छेअपच्छयं, पहरणावरणभरियजुद्धसज्ज, सच्छतं, सज्झयं, सघंट, सपडाग, पंचामेलयपरिमंडियाभिरामं, प्रोलारियजमलजुयलघंट, विज्जुपिणद्ध व कालमेह, उपाइयपध्वयं व चंकमंतं, मत्त, महामेहमिव गुलगुलतं, मणपवणजाणवेगं, भीम, संगामियाोज्जे प्राभिसेवक हत्थिरयणं पडिकप्पेइ, पडिकवेत्ता हयगयरह. पवरजोहकलियं चाउरंगिणि सेणं सण्णाहेइ, सष्णाहेत्ता जेणेव बलवाउए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता एयमाणत्तियं पच्चप्पिण। ४२-महावत ने सेनानायक का कथन सुना, उसका आदेश विनय-सहित स्वीकार किया। प्रादेश स्वीकार कर उस महावत ने, कलाचार्य से शिक्षा प्राप्त करने से जिसकी बुद्धि विविध कल्पनाओं तथा सर्जनाओं में अत्यन्त निपुण-उर्वर थी, उस उत्तम हाथी को उज्ज्वल नेपथ्य-चमकीले बस्त्र, वेषभूषा आदि द्वारा शीघ्र सजा दिया / उस सुसज्ज हाथी का धार्मिक उत्सव के अनुरूप शृगार किया, उसके कवच लगाया, कक्षा--बाँधने की रस्सी को उसके वक्षःस्थल से कसा, गले में हार तथा उत्तम आभूषण पहनाये, इस प्रकार उसे सुशोभित किया / वह बड़ा तेजोमय दीखने लगा / सुललितलालित्ययुक्त या कलापूर्ण कर्णपूरों-कानों के आभूषणों द्वारा उसे सुसज्जित किया। लटकते हुए लम्बे झूलों तथा मद की गंध से एकत्र हुए भौंरों के कारण वहाँ अंधकार जैसा प्रतीत होता था / झूल पर बेल बूटे कढ़ा प्रच्छद-छोटा आच्छादक वस्त्र डाला गया / शस्त्र तथा कवचयुक्त वह हाथी युद्धार्थ सज्जित जैसा प्रतीत होता था। उसके छत्र, ध्वजा, घंटा तथा पताका-ये सब यथास्थान योजित किये गये / मस्तक को पाँच कलंगियों से विभूषित कर उसे सुन्दर बनाया / उसके दोनों पोर-दोनों परिपार्श्व में दो घंटियाँ लटकाईं। वह हाथी बिजली सहित काले बादल जैसा दिखाई देता था। वह अपने बड़े डीलडौल के कारण ऐसा लगता था, मानो अकस्मात् कोई चलता-फिरता पर्वत उत्पन्न हो गया हो / वह मदोन्मत्त था। बड़े मेघ की तरह वह गुलगुल शब्द द्वारा अपने स्वर में मानो गरजता था / उसकी गति मन तथा वायु के वेग को भी पराभूत करने वाली थी / विशाल देह तथा प्रचंड शक्ति के कारण वह भीम-भयावह प्रतीत होता था। उस संग्राम योग्यवीरवेशान्वित प्राभिषेक्य हस्तिरत्न को महावत ने सन्नद्ध किया सुसज्जित कर तैयार किया। उसे तैयार कर धोड़े, हाथी, रथ तथा उत्तम योद्धाओं से परिगठित सेना को तैयार कराया / फिर वह महावत, जहाँ सेनानायक था, वहाँ आया और आज्ञा-पालन किये जा चुकने की सूचना दी। 43-- तए णं से बलवाउए जाणसालियं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं बयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! सुभद्दापमुहाणं देवीणं बाहिरियाए उवट्ठाणसालाए पाडिएक्कपाडिएक्काई जत्ताभिमुहाई जुताई जाणाई उवट्ठबेह, उवट्ठवेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003480
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1992
Total Pages242
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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