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________________ [औपपातिकसूत्र 43- तदनन्तर सेनानायक ने यानशालिक-यानशाला के अधिकारी को बुलाया। बुलाकर उससे कहा--सुभद्रा आदि रानियों के लिए, उनमें से प्रत्येक के लिए (अलग-अलग) यात्राभिमुखगमनोद्यत, जुते हुए यान बाहरी सभा-भवन के निकट उपस्थित करो-जुतवाकर, तैयार कर हाजिर करो। हाजिर कर प्राज्ञा-पालन किये जा चुकने की सूचना दो। ४४-तए णं से जाणसालिए बलवाउयस्स एयमझें प्राणाए विणएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणेता जेणेव जाणसाला तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता जाणाई पच्चुवेक्खेइ, पच्चवेक्खेत्ता जागाइं संपमज्जेइ, संपमज्जेत्ता जाणाई संवट्टेइ, संवद्वेत्ता जाणाई णोणेइ, णोणेत्ता जाणाणं इसे पवीणेइ, पवीणेता जाणाई समलंकरेइ, समलंकरेत्ता जाणाई वरभंडगमंडियाइं करेइ, करेत्ता जेणेव वाहणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वाहणसालं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता बाहणाई पच्चुवेक्खेइ, पच्चुवेक्खेत्ता वाहणाइं संपमज्जइ, संपमज्जित्ता वाहणाई गोणेइ, णोणेत्ता वाहणाई अप्फालेइ, अप्फालेत्ता दूसे पवीणेइ, पवीणेत्ता वाहणाई समलंकरेइ, समलकरेत्ता वाहणाई बरभंडगमंडियाई करेइ, करेत्ता वाहणाई जाणाई जोएइ, जोएता पोयलट्ठि पोयधरए य समं प्राडहइ, प्राडहित्ता वट्टमग्गं गाहेइ, गाहेत्ता जेणेव बलवाउए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता बलवाउयस्स एयमाणत्तियं पच्चप्पिणइ / ४४–यानशालिक ने सेनानायक का आदेश-वचन विनयपूर्वक स्वीकार किया / स्वीकार कर वह, जहाँ यानशाला थी, वहाँ पाया / आकर यानों का निरीक्षण किया। निरीक्षण कर उनका प्रमार्जन किया-अच्छी तरह सफाई की। सफाई कर उन्हें वहां से हटाया। वहां से हटाकर बाहर निकाला। बाहर निकाल कर उनके दूष्य-आच्छादक वस्त्र-उन पर लगी खोलियाँ दूर की। खोलियाँ हटाकर यानों को सजाया। सजाकर उन्हें उत्तम आभरणों से विभूषित किया। विभूषित कर वह जहां वाहनशाला थो, पाया। पाकर वाहनशाला में प्रविष्ट हुा / प्रविष्ट होकर वाहनों (बैल आदि) का निरीक्षण किया। निरीक्षण कर उन्हें संप्रमार्जित किया-उन पर लगी हुई धूल आदि को दूर किया वैसा कर उन्हें वाहनशाला से बाहर निकाला। बाहर निकाल कर उनकी पीठ थपथपाई। वैसा कर उन पर लगे आच्छादक वस्त्र--झूल आदि हटाये। आच्छादक वस्त्र हटाकर वाहनों को सजाया / सजाकर उन्हें उत्तम आभरणों से विभूषित किया। विभूषित कर उन्हें यानों में--गाड़ियों, रथों आदि में जोता / जोतकर प्रतोत्रयष्टिकाएं गाड़ी, रथ आदि हाँकने की लकड़ियाँ या चाबुक तथा प्रतोत्रधर --गाड़ी हाँकने वालों----गाड़ीवानों को प्रस्थापित किया-उन्हें यष्टिकाएँ देकर यात-चालन का कार्य सौंपा। वैसा कर यानों को राजमार्ग पकड़वाया-गाड़ीवान उसकी आज्ञानुसार यानों को राजमार्ग पर लाये / वैसा करवाकर वह, जहाँ सेनानायक था, वहाँ आया / प्राकर सेनानायक को आज्ञा-पालन किये जा चुकने की सूचना दी। ४५–तए णं से बलवाउए पयरगुत्तियं प्रामंतेइ, पामतेत्ता एवं बयासी-खिप्पामेव भो देवाणप्पिया! चंपं गरि सभितरवाहिरियं प्रासित्त जाव' (सम्मज्जिवलितं, सिंघाडगतियचउक्कचच्चरचउम्मुहमहापहपहेसु आसित्तसित्तसुइसम्मट्ठरत्यंतरावणवीहियं, मंचाइमंचकलियं, गाणाविहरागउच्छ्यिज्य पाडागाइपडागमंडियं, लाउल्लोइयमहियं................ ...") कारवेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि। 1. देखें सूत्र-संख्या 40 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003480
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1992
Total Pages242
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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