________________ व्युत्सर्ग] [75 शुक्लध्यान के चार पालम्बन कहे गये हैं / वे इस प्रकार हैं१. क्षान्ति-क्षमाशीलता, सहनशीलता / 2. मुक्ति-लोभ आदि के बन्धन से उन्मुक्तता। 3. मार्जव --ऋजुता-सरलता, निष्कपटता / 4. मार्दव ---मृदुता-कोमलता, निरभिमानिता। शुक्लध्यान की चार अनुप्रेक्षाएं (भावनाएं) बतलाई गई हैं / वे इस प्रकार हैं१. अपायानुप्रेक्षा--प्रात्मा द्वारा प्राचरित कर्मों के कारण उत्पद्यमान अपाय-प्रवाञ्छित, दुःखद स्थितियों-अनर्थों के सम्बन्ध में पुनः पुनः चिन्तन / 2. अशुभानुप्रेक्षा-संसार के अशुभ-पाप-पंकिल, प्राध्यात्मिक दृष्टि से अप्रशस्त स्वरूप का बार-बार चिन्तन / 3. अनन्तवत्तितानुप्रेक्षा--भवभ्रमण या संसारचक्र की अनन्तवृत्तिता अन्त काल तक चलते रहने की वृत्ति- स्वभाव पर पुनः पुनः चिन्तन / 4. विपरिणामानुप्रेक्षा-क्षण-क्षण विपरिणत होती-विविध परिणामों में से गुजरती, परिवर्तित होती वस्तु-स्थिति पर-वस्तु-जगत् की विपरिणाममिता पर बार बार चिन्तन। यह ध्यान का विवेचन है। व्युत्सर्ग व्युत्सर्ग क्या है-उसके कितने भेद हैं ? व्युत्सर्ग के दो भेद बतलाये गये हैं१. द्रव्य-व्युत्सर्ग, 2. भाव-व्युत्सर्ग / द्रव्य-व्युत्सर्ग क्या है-उसके कितने भेद हैं ? द्रव्य-व्युत्सर्ग के चार भेद हैं / वे इस प्रकार हैं--- 1. शरीर-व्युत्सर्ग- देह तथा दैहिक सम्बन्धों की ममता या प्रासक्ति का त्याग / 2. गण-व्युत्सर्ग-गण एवं गण के ममत्व का त्याग / 3. उपधि-व्युत्सर्ग-- उपधि का त्याग करना एवं साधन-सामग्रीगत ममता का, साधन-सामग्री को मोहक तथा आकर्षक बनाने हेतु प्रयुक्त होने वाले साधनों का त्याग / 4. भक्त-पान-न्युत्सर्ग - आहार-पानी का, तद्गत आसक्ति या लोलुपता आदि का त्याग / भाव-व्युत्सर्ग क्या है उसके कितने भेद हैं ? भाव-व्युत्सर्ग के तीन भेद कहे गये हैं--१. कषाय-व्युत्सर्ग, 2. संसार-व्युत्सर्ग, 3. कर्म-व्युत्सर्ग / कषाय-व्युत्सर्ग क्या है-उसके कितने भेद हैं ? कषाय-व्युत्सर्ग के चार भेद बतलाये गये हैं, जो इस प्रकार हैं..... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org