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________________ स्थविर] सत्तर से नब्बे वर्ष तक की आयु का पुरुष स्थविर कहा जाता है। तदनन्तर उसकी संज्ञा वर्षीयस् (वर्षीयान्) होती है। स्त्री के लिए उन्होंने सत्तर के स्थान पर पचास वर्ष का उल्लेख किया है।' जो श्रुत-समवाय आदि अंग एवं शास्त्र के पारगामी होते हैं। वे श्रुत-स्थविर कहे जाते हैं।' उनके लिए आयु की इयत्ता का निर्बन्ध नहीं है / वे छोटी आयु के भी हो सकते हैं। इस सन्दर्भ में मनुस्मृति में कहा है "कोई पुरुष इसलिए वृद्ध नहीं होता कि उसके बाल सफेद हो गये हों / जो युवा होते हुए भी अध्ययनशील-ज्ञानसम्पन्न है, मनुष्यों की तो बात ही क्या, उसे देव भी वृद्ध कहते है / ''3 __ पर्याय-स्थविर वे होते हैं, जिनका दीक्षाकाल लम्बा होता है / वृत्तिकार ने इनके लिए बीस वर्ष के दीक्षा-पर्याय के होने का उल्लेख किया है। ऊपर तीन प्रकार के स्थविरों का जो विवेचन हुआ है, उसका सार यह है - जिनकी आयु परिपक्व होती है, उन्हें जीवन के अनेक प्रकार के अनुभव होते हैं। वे जीवन में बहुत प्रकार के अनुकूल-प्रतिकूल, प्रिय-अप्रिय घटनाक्रम देखे हुए होते हैं अतः वे विपरीत परिस्थितियों में भी विचलित नहीं होते, स्थिर बने रहते हैं। स्थविर शब्द स्थिरता का भी द्योतक है / जिनका श्रुतानुशीलन, शास्त्राध्ययन विशाल होता है, वे अपने विपुल ज्ञान द्वारा जीवन-सत्त्व के परिज्ञाता होते हैं / शास्त्र ज्ञान द्वारा उनके जीवन में स्थिरता एवं दृढता होती है / जिनका दीक्षा-पर्याय संयम-जीवितव्य लम्बा होता है, उनके जीवन में धार्मिक परिपक्वता, चारित्रिक बल, आत्मिक प्रोज, एतत्प्रसूत स्थिरता सहज ही प्रस्फुटित हो जाती है। इस प्रकार के स्थिरतामय जीवन के धनी श्रमणों की अपनी गरिमा है / वे दृढधर्मा होते हैं / संघ के श्रमणों को धर्म में, साधना में, संयम में स्थिर बनाये रखने के लिए सदैव जागरूक तथा प्रयत्नशील रहते हैं। कहा गया है "जो साधु लौकिक एषणावश सांसारिक कार्य-कलापों में प्रवृत्त होने लगते हैं, जो संयमपालन में, ज्ञानानुशीलन में कष्ट का अनुभव करते हैं; उन्हें जो श्रमण ऐहिक तथा पारलौकिक हानि 1. Old age (described as commencing at seventy in men and fifty in women, and ending at ainety, after which period a man is called Varsbiyas). __----Sanskrit-English Dictionary, Page 1265. 2. श्रुतस्थविरा:-समवायाङ्गधारिणः / -स्थानांग सूत्र 10.761 3. न तेन वृद्धो भवति येनास्य पलितं शिरः / ___ यो वै युवाऽप्यधीयानस्तं देवाः स्थविरं विदुः / / --मनुस्मृति 2.156 4. पर्यायस्थविरा:--विशतिवर्षप्रमाणप्रत्रज्या-पर्यायवन्तः / --स्थानांग सूत्र 10.761 वत्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003480
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1992
Total Pages242
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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