________________ [औपपातिकसूत्र वैदिक परम्परा में वेद, उसके अंग प्रादि के अध्यापन के सन्दर्भ में प्राचार्य एवं उपाध्याय पदों का उल्लेख हुमा है। प्राचार्य के सम्बन्ध में लिखा है--... "जो द्विज शिष्य का उपनयन-संस्कार कर उसे संकल्प--कल्प या यज्ञविद्या सहित, सरहस्य-- उपनिषद् सहित वेद पढ़ाता है, उसे प्राचार्य कहते हैं।' उपाध्याय के सम्बन्ध में उल्लेख है “जो वेद का एक भाग- मन्त्रभाग तथा वेद के अंग-.--शिक्षा----ध्वनि-विज्ञान, कल्प-कर्मकाण्ड-विधि, व्याकरण-शब्दशास्त्र, निरुक्त-शब्द-व्याख्या या व्युत्पत्तिशास्त्र तथा ज्योतिष-- नक्षत्र-विज्ञान पढ़ाता है, उसे उपाध्याय कहा जाता है।"२ प्राचार्य तथा उपाध्याय-दोनों के अध्यापनक्रम पर सुक्ष्मता से विचार करने पर प्रतीत होता है कि प्राचार्य वेदों के रहस्य एवं गहन अर्थ का ज्ञान कराते थे और उपाध्याय वेद-मन्त्रों का विशुद्ध उच्चारण, विशुद्ध पाठ सिखाते थे। जैन परम्परा में स्वीकृत आचार्य तथा उपाध्याय के पाठनक्रम के साथ प्रस्तुत प्रसंग तुलनीय है। स्थविर __जैन श्रमण-संघ में स्थविर का पद अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है / स्थानांग सूत्र में दश प्रकार के स्थविर बतलाये गये हैं, जिनमें से अन्तिम तीन जाति-स्थविर, श्रुत-स्थविर तथा पर्याय-स्थविर का सम्बन्ध विशेषतः श्रमण-जीवन से है। स्थविर का सामान्य अर्थ प्रौढ या वद्ध है। जो जन्म से अर्थात् आयु से स्थविर होते हैं, वे जाति-स्थविर कहे जाते हैं। स्थानांग वृत्ति में उनके लिए साठ वर्ष की आयु का उल्लेख किया गया है। सर मोनियर विलियम्स ने अपने कोश में स्थविर शब्द की व्याख्या में उल्लेख किया है कि --- - ----- 1. उपनीय तु यः शिष्य वेदमध्यापयेद द्विजः / सकल्पं सरहस्यं च तमाचार्य प्रचक्षते / / - मनुस्मृति 2.140 2. शिक्षा व्याकरणं छन्दो निरुक्तं ज्योतिष तथा / कल्पश्चेति षडङ्गानि वेदस्याहर्मनीषिणः / / --संस्कृत साहित्य का इतिहास, पृष्ठ 44 3. 1. ग्राम-स्थविर, 2. नगर-स्थविर, 3. राष्ट्र-स्थविर, 4. प्रशास्त-स्थविर, 5. कुल-स्थविर, 6. गण-स्थविर, 7. संघ-स्थविर, 8, जाति-स्थविर, 9. श्रुत-स्थविर, 10. पर्याय-स्थविर / --स्थानांग सूत्र 10.761 4. (क) पाइअसहमहण्णवो-~-पृष्ठ 450 (ख) संस्कृत हिन्दी कोश : वामन शिवराम आप्टे -पृष्ठ 11.39 5. जातिस्थविरा:---पप्टिवर्षप्रमाणजन्मपर्यायाः / .. --स्थानांग सूत्र 10.761 वृत्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org