________________ विनय -ज्ञान, दर्शन, अनत्याशातना-विनय विनय विनय क्या है-वह कितने प्रकार का है ? विनय सात प्रकार का बतलाया गया है१. ज्ञान-विनय, 2. दर्शन-विनय, 3. चारित्र-विनय, 4. मनोविनय, 5. वचन-विनय, 6. काय-विनय, 7. लोकोपचार-विनय / ज्ञान-विनय ज्ञान-विनय क्या है-उसके कितने भेद हैं ? ज्ञान-विनय के पाँच भेद बतलाये गये हैं१. पाभिनिबोधिक ज्ञान- मतिज्ञान-विनय, 2. श्रतज्ञान-विनय, 3. अवधिज्ञान-विनय, 4. मन:पर्यव-ज्ञान-विनय, 5. केवलज्ञान-विनय--इन ज्ञानों की यथार्थता स्वीकार करते हए इनके लिए विनीत भाव से यथाशक्ति पुरुषार्थ या प्रयत्न करना / दर्शन-विनय दर्शन-विनय क्या है-उसके कितने प्रकार हैं ? दर्शन-विनय दो प्रकार का बतलाया गया है- 1. शुश्रूषा-विनय, 2. अनत्याशातना-विनय / शुश्रूषा-विनय क्या है-उसके कितने प्रकार हैं ? शुश्रूषा-विनय अनेक प्रकार का बतलाया गया है, जो इस प्रकार है अभ्युत्थान–गुरुजनों या गुणीजनों के आने पर उन्हें आदर देने हेतु खड़े होना / आसनाभिग्रह--गुरुजन जहाँ बैठना चाहें वहाँ आसन रखना। ग्रासन-प्रदान-गुरुजनों को प्रासन देना। गुरुजनों का सत्कार करना, सम्मान करना, यथाविधि वन्दन-प्रणमन करना, कोई बात स्वीकार या अस्वीकार करते समय हाथ जोड़ना, प्राते हुए गुरुजनों के सामने जाना, बैठे हुए गुरुजनों के समीप बैठना, उनकी सेवा करना, जाते हुए गुरुजनों को पहुँचाने जाना / यह शुश्रूषा-विनय है / अनत्याशातना-विनय अनत्याशातना-विनय क्या है उसके कितने भेद हैं ? अनत्याशातना-विनय के पैंतालीस भेद हैं / वे इस प्रकार हैं 1. अर्हतों की आशातना नहीं करना प्रात्मगुणों का प्राशातन नाश करने वाले अवहेलना पूर्ण कार्य नहीं करना / 2. अर्हत्-प्रज्ञप्त--प्रहंतों द्वारा बतलाये गये धर्म की आशातना नहीं करना। 3. प्राचार्यों की प्राशातना नहीं करना / 4. उपाध्यायों को प्राशतना नहीं करना / 5. स्थविरों-ज्ञानवृद्ध, चारित्रवृद्ध, वयोवृद्ध श्रमणों की आशातना नहीं करना / 6. कुल को आशातना नहीं करना / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org