________________ प्रायश्चित्त [57 वाग्योग-प्रतिसंलीनता क्या है ? अकुशल-अशुभ वचन का निरोध-दुर्वचन नहीं बोलना अथवा कुशल वचन-सद्वचन बोलने का अभ्यास करना वाग्योग-प्रतिसलीनता है। काययोग-प्रतिसलीनता क्या है ? हाथ, पर आदि सुसमाहित-सुस्थिर कर, कछुए के सदश अपनी इन्द्रियों को गुप्त कर, सारे शरीर को संवत कर प्रवृत्तियों से खींचकर-हटाकर सुस्थिर होना काययोग-प्रतिसंलीनता है। यह योग-प्रतिसंलीनता का विवेचन है। विविक्त-शय्यासन-सेवनता क्या है ? पाराम--पुष्पप्रधान बगीचा, पुष्पवाटिका, उद्यानपुष्प-फल-समवेत बड़े-बड़े वृक्षों से युक्त बगीचा, देवकुल- देवमन्दिर, छतरियाँ, सभा–लोगों के बैठने या विचार-विमर्श हेतु एकत्र होने का स्थान, प्रपा-जल पिलाने का स्थान, प्याऊ; पणित-गृहबर्तन-भांड आदि क्रय विक्रयोचित वस्तुएँ रखने के घर-गोदाम, पणितशाला-क्रय-विक्रय करने वाले लोगों के ठहरने योग्य गृह विशेष, ऐसे स्थानों में, जो स्त्री, पशु तथा नपुसक के संसर्ग से रहित हो, प्रासुक-निर्जीव, अचित्त, एषणीय-संयमी पुरुषों द्वारा ग्रहण करने योग्य, निर्दोष पीठ, फलक-- काष्ठपट्ट, शय्या-पैर फैलाकर सोया जा सके, ऐसा बिछौना, तृण, घास आदि का पास्तरण-कुछ छोटा बिछौना प्राप्त कर विहरण करना--साधनामय जीवन-यापन करना विविक्त-शय्यासनसेवता है। यह प्रतिसंलीनता का विवेचन है, जिसके साथ बाह्य तप का वर्णन सम्पन्न होता है। __श्रमण भगवान् महावीर के अन्तेवासी अनगार उपर्युक्त विविध प्रकार के बाह्य तप के अनुष्ठाता थे। प्राभ्यन्तर तप क्या है—कितने प्रकार का है ? प्राभ्यन्तर तप छह प्रकार का कहा गया हैप्रायश्चित्त 1. प्रायश्चित्त-व्रत-पालन में हुए अतिचार या दोष की विशुद्धि, 2. विनय-विनम्र व्यवहार (जो कर्मों के विनयन- अपनयन का हेतु है) 3. वैयावृत्त्य-संयमी पुरुषों की आहार आदि द्वारा सेवा, 4. स्वाध्याय-यात्मोपयोगी ज्ञान प्राप्त करने हेतु मर्यादापूर्वक सत्-शास्त्रों का पठनपाठन, 5. ध्यान-एकाग्रतापूर्ण सत्-चिन्तन, चित्तवृत्तियों का निरोध तथा 6. व्युत्सर्ग-हेय या त्यागने योग्य पदार्थों का त्याग / प्रायश्चित्त क्या है --कितने प्रकार का है ? / प्रायश्चित्त दश प्रकार का कहा गया है, जो इस प्रकार है 1. पालोचनाह-यालोचन प्रकटीकरण से होने वाला प्रायश्चित / गमन, आगमन, भिक्षा, प्रतिलेखन प्रादि दैनिक कार्यों में लगने वाले दोषों को गुरु या ज्येष्ठ साधु के समक्ष प्रकट करने, उनकी आलोचना करने से दोष-शुद्धि हो जाती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org