SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 74 ] [ प्रश्नव्याकरणसूत्र : शु. 1, अ. 2 इस तथ्य को सूत्रकार ने यहां स्पष्ट किया है। साथ ही प्राणियों का उपघात करने वाली भाषा का विवरण भी दिया है / यथा-मन्त्र, तन्त्र, यन्त्र आदि के प्रयोग बतला कर किसी का अनिष्ट करना, चोरी एवं परस्त्रीगमन सम्बन्धी उपाय बतलाना, ग्रामघात की विधि बतलाना, जंगल को जलाने का उपदेश देना आदि / ऐसे समस्त वचन हिंसोत्तेजक अथवा हिंसाजनक होने के कारण विवेकवान् पुरुषों के लिए त्याज्य हैं / हिंसक उपदेश-प्रादेश---- ५६-पुट्ठा वा अपुट्ठा वा परतत्तियवावडा य असमिक्खियमासिणो उपदिसंति, सहसा उट्टा गोणा गवया दमंतु, परिणयवया अस्सा हत्थी गवेलग-कुक्कुडा य किज्जंतु, किणावेह य विक्केह पहय य सयणस्स देह पियह दासी-वास-भयग-भाइल्लगा य सिस्सा य पेसगजणो कम्मकरा य फिकरा य एए सयणपरिजणो य कीस अच्छंति ! भारिया मे करितु कम्म, गहणाईवणाइं खेतखिलमूभिवल्लराइं उत्तणघणसंकडाई डझंतु-सूडिज्जंतु य रुक्खा, भिज्जंतु जंतभंडाइयस्स उहिस्स कारणाए बहुविहस्स य अटाए उच्छू दुज्जंतु, पीलिज्जंतु य तिला, पयावेह य इट्टकाउ मम घरटुयाए, खेत्ताई कसह कसावेह य, लहुं गाम-मागर-णगर-खेड-कबडे णिवेसेह, अडवोदेसेसु विउलसीमे पुष्पाणि य फलाणि य कंदमूलाई कालपत्ताई गिण्हेह, करेह संचयं परिजणट्ठयाए साली वीही जवा य लुच्चंतु मलिज्जंतु उत्पणिज्जंतु य लहुं य पविसंतु य कोट्ठागारं। ५६–अन्य प्राणियों को सन्ताप-पीडा प्रदान करने में प्रवृत्त, अविचारपूर्वक भाषण करने वाले लोग किसी के पूछने पर और (कभी-कभी) विना पूछे ही सहसा (अपनी पटुता प्रकट करने के लिए) दूसरों को इस प्रकार का उपदेश देते हैं कि-ऊंटों को, बैलों को और गवयों-रोझों को दमो-इनका दमन करो। क्यःप्राप्त-परिणत आयु वाले इन अश्वों को, हाथियों को, भेड़-बकरियों को या मुर्गों को खरीदो खरीदवायो, इन्हें बेच दो, पकाने योग्य वस्तुओं को पकानो स्वजन को दे दो, पेय-मदिरा आदि पीने योग्य पदार्थों का पान करो / दासी, दास-नौकर, भूतक-भोजन देकर रक्खे जाने वाले सेवक, भागीदार, शिष्य, कर्मकर--कर्म करनेवाले-नियत समय तक आज्ञा पालने वाले, किंकर- क्या करू? इस प्रकार पूछ कर कार्य करने वाले, ये सब प्रकार के कर्मचारी तथा ये स्वजन और परिजन क्यों-कैसे (निकम्मे निढल्ले) वैठे हुए हैं ! ये भरण-पोषण करने योग्य हैं अर्थात इनका वेतन आदि चुका देना चाहिए। ये आपका काम करें। ये सघन वन, खेत, विना जोती हुई भूमि, वल्लर-विशिष्ट प्रकार के खेत, जो उगे हुए घास-फूस से भरे हैं, इन्हें जला डालो, घास कटवानो या उखड़वा डालो, यन्त्रों-धानी गाड़ी प्रादि भांड-कुन्डे आदि उपकरणों के लिए और नाना प्रकार के प्रयोजनों के लिए वृक्षों को कटवाओ, इक्षु-ईख-गनों को कटवाओ, तिलों को पेलो-इनका तेल निकालो, मेरा घर बनाने के लिए इंटों को पकाओ. खेतों को जोतो अथवा जुतवाओ, जल्दी-से ग्राम, प्राकर (खानों वाली वस्ती) नगर, खेड़ा और कर्वट-कुनगर प्रादि को वसाओ / अटवी-प्रदेश में विस्तृत सीमा वाले गाँव आदि बसाओ / पुष्पों और फलों को तथा प्राप्तकाल अर्थात् जिनको तोड़ने या ग्रहण करने का समय हो चुका है, ऐसे कन्दों और मूलों को ग्रहण करो। अपने परिजनों के लिए इनका संचय करो / शाली-धान, ब्रीहि---अनाज आदि और जो को काट लो / इन्हें मलो अर्थात् मसल कर दाने अलग कर लो। पवन से साफ करो--दानों को भूसे से पृथक् करो और शीघ्र कोठार में भर लो-डाल लो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003478
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages359
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy