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________________ 40 ] [अन्तकृद्दशा क्या इन छह अनगारों को देखकर तुम्हारे मन में इस प्रकार का प्राध्यात्मिक, चिन्तित, प्रार्थित, मनोगत और संकल्पित विचार उत्पन्न हुया है कि—पोलासपुर नगर में अतिमुक्त कुमार ने तुम्हें एक समान, नलकूबरवत् पाठ पुत्रों को जन्म देने का और भरतक्षेत्र में अन्य माताओं द्वारा इस प्रकार के पुत्रों को जन्म नहीं देने का भविष्य-कथन किया था, वह मिथ्या सिद्ध हुआ, क्योंकि भरतक्षेत्र में भी अन्य माताओं ने ऐसे यावत् पुत्रों को जन्म दिया है। ऐसा जानकर इस विषय में पृच्छा करने के लिये तुम यावत् वन्दन को निकली और निकलकर शीघ्रता से मेरे पास चली आई हो / देवकी देवी ! क्या यह बात सत्य है ? देवकी ने कहा-'हाँ प्रभु, सत्य है / ' विवेचन-भगवान् अरिष्टनेमि के शिष्यों को तीसरी बार अपने घर में पाया देखकर देवकी देवी के हृदय में जो संकल्प उत्पन्न हुआ, उसके विषय में निश्चय करने के लिये वह भगवान् अरिष्टनेमि के चरणों में उपस्थित हुई। भगवान् ने उसके हृदयगत संकल्प का स्पष्ट शब्दों में वर्णन किया / इन सब बातों का प्रस्तुत सूत्र में दिग्दर्शन कराया गया है। __"अज्झथिए समुप्पण्णे".......... का अर्थ इस प्रकार है-अज्झथिए अर्थात् आध्यात्मिकआत्मगत / कप्पिए-कल्पित अर्थात् हृदय में उठनेवाली अनेकविध कल्पनाएं। चिन्तिए-चिन्तित अर्थात बार-बार किया गया विचार। पत्थिए-प्राथित अर्थात "इस दशा का मल कारण क्या है इस जिज्ञासा का पुनः पुनः होना। मणोगए-मनोगत अर्थात् जो विचार अभी मन में हैं प्रकट नहीं किये गये हैं। संकप्प-संकल्प अर्थात् सामान्य विचार / __ अइमुत्तण कुमारसमणेणं' का अर्थ है--अतिमुक्त नामक कुमार श्रमण / अतिमुक्त कुमार श्रमण (सुकुमार शरीरवाले, या कुमारावस्था वाले श्रमण) कंस के छोटे भाई थे। जिस समय कंस की पत्नी जीवयशा देवकी के साथ क्रीडा कर रही थी उस समय अतिमुक्त कुमार जीवयशा के घर में भिक्षा के लिये गये थे। आमोद-प्रमोद में मग्न जीवयशा ने अपने देवर को मुनि के रूप में देखकर उपहास करना प्रारंभ किया / वह बोली-देवर ! आयो तुम भी मेरे साथ क्रीडा करो, इस पापोद-प्रमोद में तुम भी भाग लो। इस पर मुनि अतिमुक्त कुमार जीवयशा से कहने लगेजीवयशे! जिस देवकी के साथ तुम इस समय क्रीडा कर रही हो इस देवकी के गर्भ से आठ पत्र उत्पन्न होंगे। ये पुत्र इतने सुन्दर और पुण्यात्मा होंगे कि भारतवर्ष में अन्य किसी स्त्री के ऐसे पुत्र नहीं होंगे। परंतु इस देवकी का सातवां पुत्र तेरे पति को मारकर आधे भारतवर्ष पर राज्य करेगा। यह बात देवकी देवी ने बचपन में सुनी थी। अत: इसी के समाधान हेतु उसने भगवान् अरिष्टनेमि के पास जाने का निश्चय किया। अरिहंत परमात्मा या साधु-साध्वियों के पास जाते समय जो आवश्यक नियम अपनाने होते हैं, उन्हें अभिगम कहा जाता है / प्रस्तुत सूत्र में सूत्रकार ने देवकी देवी के हृदयगत संकल्प-विकल्प का चित्रण किया है। देवकी देवी अपने हृदय की वात अरिष्टनेमि भगवान् के चरणों में निवेदन करने के लिये चल पड़ी और वहां उपस्थित हो गई / तदनन्तर देवकी देवी के मानस को समाहित करने के लिये अरिष्टनेमि भगवान् ने जो कुछ कहा, अग्रिम सूत्र में इसका वर्णन करते हुए सूत्रकार कहते हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003476
Book TitleAgam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages249
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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