________________ | 35 तृतीय वर्ग हाथ प्रमाण भूमि को देखते हुए, ईर्यासमिति का पालन करते हुए, जहाँ द्वारका नगरी थी, वहाँ आते हैं / वहाँ पाकर द्वारका नगरी में साधुवृत्ति के अनुसार धनी-निर्धन आदि सभी घरों में भिक्षा के लिये भ्रमण करने लगे। विवेचन--प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि भगवान् अरिष्टनेमि के छहों मुनि भगवान् से आज्ञा लेकर तीन भागों में विभाजित होकर द्वारका नगरी में बेले के पारणे के लिये पधारते हैं। साधुओं का भिक्षार्थ गमन कब और किस प्रकार होता है, यह इस सूत्र में बताया गया है / ८-तत्थ णं एगे संघाडए बारवईए नयरीए उच्च-नीय-मज्झिमाइं कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडमाणे अडमाणे वसुदेवस्स रण्णो देवईए देवीए गेहे अणुष्पविट्ठ। तए णं सा देवई देवी ते अणगारे एज्जमाणे पासइ, पासित्ता हट्ठ जाव [तुट्ठचित्तमादिया पोइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस-विसप्पमाण] हियया पासणाप्रो प्रभुठेइ, अब्भुठित्ता सत्तट्ठ पयाइं अणुगच्छइ, तिक्खुत्तो पायाहिणं पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता जेणेव भत्तघरए तेणेव उवागया सीहकेसराणं मोयगाणं थालं भरेइ, ते अणगारे पडिलाभेइ, वंदइ नमसइ, बंदित्ता नमंसित्ता पडिविसज्जे। तयाणंतरं दोच्चे संघाडए बारवईए नयरीए उच्च जाव' विसज्जेइ / उन तीन संघाटकों (संघाडों) में से एक संघाड़ा द्वारका नगरी के ऊँच-नीच-मध्यम घरों में, एक घर से, दूसरे घर, भिक्षाचर्या के हेतु भ्रमण करता हुआ राजा वसुदेव की महारानी देवकी के प्रासाद में प्रविष्ट हुग्रा। उस समय वह देवकी रानी उन दो मुनियों के एक संघाडे को अपने यहाँ पाता देखकर हृष्टतुष्ट [चित्त के साथ आनन्दित हुई। प्रीतिवश उसका मन परमाह्लाद को प्राप्त हुआ, हर्षातिरेक से उसका हृदय कमलवत् प्रफुल्लित हो उठा] आसन से उठकर वह सात-साठ कदम मुनियुगल के सम्मुख गई। सामने जाकर उसने तीन बार दक्षिण की ओर से उनकी प्रदक्षिणा की। प्रदक्षिणा कर उन्हें बन्दन-नमस्कार किया। वन्दन-नमस्कार के पश्चात् जहाँ भोजनशाला थी वहाँ पाई। भोजनशाला में आकर सिंहकेसर मोदकों से एक थाल भरा और थाल भर कर उन मुनियों को प्रतिलाभ दिया / पुनः वन्दन-नमस्कार करके तत्पश्चात् देवकी ने उन्हें प्रतिविजित किया अर्थात् विदाई दी। प्रथम संघाटक के लौट जाने के पश्चात् उन छह सहोदर साधुओं के तीन संघाटकों में से दूसरा संघाटक भी द्वारका के उच्च-नीच-मध्यम कुलों में भिक्षार्थ भ्रमण करता हुआ महारानी देवकी के प्रासाद में पाया। विवेचन–प्रस्तुत सूत्र में अरिष्टनेमि भगवान् के छह साधुओं में से पहली और दूसरी टोली को महाराज वसुदेव की महारानी देवकी देवी द्वारा सत्कृत और सन्मानित करने के अनन्तर विधिपूर्वक दी जानेवाली सिंह केशर मोदकों की भिक्षा का वर्णन किया गया है। मुनियों की दो टोलियां देवकी के घर से आहार लेकर चली गईं, इस के पश्चात् तीसरी टोली के संबंध में सूत्रकार आगे कहते हैं१. ऊपर के पैरे में आ गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org