________________ अष्टम अध्ययन गजसुकुमार उत्क्षप ५–जइ णं (भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स तच्चस्स वग्गस्स सत्तमस्स अज्झयणस्स अयमठे पण्णत्त, अट्ठमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स अंतगडदसाणं के अछे पण्णत्ते?) एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवईए नयरीए, जहा पढमे जाव अरहा अरिठ्ठनेमी समोसढे। जंबू स्वामी ने आर्य सुधर्मा स्वामी से निवेदन किया-भगवन् ! यदि श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने अन्तगडदशा के तृतीय वर्ग के सप्तम अध्ययन का यह अर्थ प्रतिपादन किया है, तो भगवन् ! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने अन्तगडदशा के तृतीय वर्ग के आठवें अध्ययन का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है ? सुधर्मा स्वामी ने कहा-हे जंबू ! उस काल, उस समय में द्वारका नगरी में प्रथम अध्ययन में किये गये वर्णन के अनुसार यावत् अरिहंत अरिष्टनेमि भगवान् पधारे / छह अनगारों का संकल्प ६-तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहओ अरिठणेमिस्स अंतेवासी छ अणगारा भायरो सहोदरा होत्था / सरिसया सरित्तया सरिव्वया नीलुप्पल-गवल-गुलिय-प्रयसिकुसुमध्यगासा सिरिवच्छंकियवच्छा कुसुम-कुडलभद्दलया नलकुब्बरसमाणा। तए णं ते छ अणगारा जं चेव दिवस मडा भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइया, तं चेव दिवस अरहं अरिट्ठणेमि वंदति णमंस ति, वंदित्ता समंसित्ता एवं वयासी इच्छामो णं भंते ! तुम्भेहि अब्भणुण्णाया समाणा जावज्जीवाए छठंछठेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं संजमेणं तवसा अध्याणं भावेमाणा विहरित्तए / अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेह / तए णं ते छ अणगारा अरहया परिणमिणा अब्भगुण्णाया समाणा जावज्जोबाए छठेंछठेणं जाव विहरति / उस काल, उस समय भगवान् नेमिनाथ के अंतेवासी-शिष्य छह मुनि सहोदर भाई थे। वे समान आकार, त्वचा और समान अवस्थावाले प्रतीत होते थे। उन का वर्ण नील कमल, महिष के शृग के अन्तर्वर्ती भाग, गुलिका-रंग विशेष और अलसी के समान था। श्रीवत्स से अंकित वक्ष वाले और कुसुम के समान कोमल और कुडल के समान घुघराले बालोंवाले वे सभी मुनि नलकूबर (वैश्रमण-पुत्र) के समान प्रतीत होते थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org