________________ सप्तम अध्ययन सारणे ४-तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवईए नयरीए, जहा पढमे, नवरं-वसुदेवे राया। धारिणी देवी। सीहो सुमिणे / मारणे कुमारे। पण्णासो दाओ। चउद्दम पुव्वा। वीस वासा परियायो। सेस जहा गोयमस्स जाव' सेत्त जे सिद्ध। उस काल तथा उस समय में द्वारका नगरी थी। उसमें वसुदेव राजा थे। उसकी रानी धारिणी थी। उसने गर्भाधान के पश्चात् स्वप्न में सिंह देखा / समय पाने पर बालक को जन्म दिया और उसका नाम सारण कुमार रखा गया। उसे विवाह में पचास-पचास वस्तुओं का दहेज मिला। सारण कुमार ने सामायिक से लेकर 14 पूर्वो का अध्ययन किया। बीस वर्ष तक दीक्षा पर्याय का पालन किया। शेष सब वृत्तान्त गौतम की तरह है। शत्रुजय पर्वत पर एक मास की संलेखना करके यावत् सिद्ध हुए। 1. प्रस्तुत जाव का पूरक पाठ प्रथम वर्ग के 9 वें सूत्र में प्रा गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org