________________ तृतीय वर्ग ] [ 31 "इतना विशेष है या इतना अन्तर है / अनीयस कुमार और गौतम कुमार के अध्ययन में जो अन्तर है उसे सूत्रकार ने सामाइय....."पुत्वाइं इन पदों द्वारा व्यक्त कर दिया है / भाव यह है कि गौतम कुमार ने तो केवल ग्यारह अंगों का अध्ययन किया था परंतु अनीयस कुमार ने 11 अंग भी पढे और साथ ही 14 पूर्वो का अध्ययन भी किया। 14 पूर्व-तीर्थ का प्रवर्तन करते समय तीर्थकर भगवान् जिस अर्थ का गणधरों को पहले पहल उपदेश देते हैं या गणधर देव पहले पहल अर्थ को सूत्र रूप में गूंथते हैं उसे पूर्व कहते हैं / ये पूर्व 14 हैं, जो इस प्रकार हैं में सभी द्रव्यों और सभी पर्यायों के उत्पाद को लेकर प्ररूपणा की गई है। 2. अग्रायणीपूर्व–इस में सभी द्रव्यों, सभी पर्यायों और सभी जीवों के परिमाण का वर्णन है। 3. वीर्य-प्रवादपूर्व–इस में कर्म-सहित और कर्म-रहित जीवों तथा अजीवों के वीर्य (शक्ति) का वर्णन है। 4. अस्ति-नास्ति-प्रवाद पूर्व-संसार में धर्मास्तिकाय आदि जो वस्तुएँ विद्यमान हैं तथा आकाश-कुसुम आदि जो अविद्यमान हैं, उन सब का वर्णन इस पूर्व में है। 5. ज्ञानप्रवादपूर्व-इस में मतिज्ञान आदि पंचविध ज्ञानों का विस्तृत वर्णन है। 6. सत्य-प्रवादपूर्व-इस में सत्यरूप संयम का या सत्य वचन का विस्तृत विवेचन किया गया है। 7. प्रात्म-प्रवादपूर्व–इस में अनेक नयों तथा मतों की अपेक्षा से प्रात्मा का वर्णन है। 8. कर्म-प्रवादपूर्व–इसमें आठ कर्मों का निरूपण, प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश आदि भेदों द्वारा विस्तृत रूप में किया गया है। 6. प्रत्याख्यानप्रवादपूर्व-इस में प्रत्याख्यानों का भेद-प्रभेदपूर्वक वर्णन है। 10. विद्यानुवादपूर्व-इस में अनेक विद्याओं एवं मंत्रों का वर्णन है। 11. प्रवन्ध्यपूर्व–इस में ज्ञान, तप, संयम आदि शुभ फल वाले तथा प्रमाद आदि अशुभ फलवाले, निष्फल न जाने वाले कार्यों का वर्णन है / 12. प्राणायुष्य-प्रवादपूर्वइस में दस प्राण और आयु आदि का भेद-प्रभेदपूर्वक विस्तृत वर्णन है। 13. क्रिया-विशालपूर्व-इसमें कायिको प्राधिकरणिको आदि तथा संयम में उपकारक क्रियाओं का वर्णन है। 14. लोक-बिन्दुसार-पूर्व श्रु तज्ञान में जो शास्त्र बिन्दु की तरह सबसे श्रेष्ठ है, वह लोकबिन्दुसार है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org