________________ 30] [ अन्तकृद्दशा कौटुबिक (साथ रहने वाली), बत्तीस रसोई बनाने वाली, बत्तीस भण्डार की रक्षा करने वाली, बत्तीस तरुणियाँ, बत्तीस पुष्प धारण करने वाली, बत्तीस बलिकर्म करने वाली, बत्तीस शय्या बिछाने वाली, बत्तीस आभ्यन्तर और बत्तीस बाह्य प्रतिहारियाँ, बत्तीस माला बनाने वाली और बत्तीस पेषण करने वाली दासियाँ दी। इसके अतिरिक्त बहुतसा हिरण्य, सुवर्ण, कांस्य, वस्त्र तथा विपुल धन, कनक यावत् सारभूत धन दिया, जो सात पीढी तक इच्छापूर्वक देने और भोगने के लिये पर्याप्त था। इस प्रकार अनीयस कुमार ने भी प्रत्येक स्त्री को एक-एक हिरण्य कोटि, एक-एक स्वर्ण कोटि, इत्यादि पूर्वोक्त सभी वस्तुएँ दी, यावत् एक-एक पेषणकारी दासी तथा बहुत-सा हिरण्य-सुवर्ण आदि विभक्त कर दिया। ऊँचे प्रासादों में अनीयस कुमार बजते हुए मृदंगों के द्वारा पर्याप्त भोगों का उपभोग करता हुमा रहने लगा। उस काल तथा उस समय श्रीवन नामक उद्यान में भगवान् अरिष्टनेमि स्वामी पधारे / यथाविधि अवग्रह को याचना करके संयम एवं तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे। जनता उनका धर्मोपदेश सुनने के लिये उद्यान में पहुँची और धर्मोपदेश सुन कर अपने-अपने घर वापस चली गई। जनसमूह का कोलाहल सुनकर अनीयस कुमार ने भी भगवान् के निकट जाने का संकल्प किया। वे भगवान् की सेवा में पहुंचे / उन्होंने भी भगवान का प्रवचन सुना / प्रवचन के प्रभाव से उनके हृदय में वैराग्य उत्पन्न हो गया / अन्त में गौतम कुमार की तरह वे भगवान के चरणों में दीक्षित हो गये। दीक्षा लेने के अनन्तर उन्होंने सामायिक से लेकर चौदह पूओं का अध्ययन किया। बीस वर्ष दीक्षा का पालन किया / अन्त समय में एक मास की संलेखना करके शत्रुजय पर्वत पर सिद्ध गति को प्राप्त किया। सधर्मा स्वामी कहने लगे हे जम्ब ! इस प्रकार श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने अष्टम अंग अन्तगड के तृतीय वर्ग के प्रथम अध्ययन का अर्थ प्रतिपादन किया था। 2-6 अध्ययन इसी प्रकार अनन्तसेन से लेकर शत्रुसेन पर्यन्त अध्ययनों का वर्णन भी जान लेना चाहिए / सब का बत्तीस-बत्तीस श्रेष्ठ कन्याओं के साथ विवाह हुअा था और सब को बत्तीस-बत्तीस पूर्वोक्त वस्तुएं दी गई / बीस वर्ष तक संयम का पालन एवं 14 पूर्वो का अध्ययन किया / अन्त में एक मास की संलेखना द्वारा शत्रुजय पर्वत पर पाँचों ही सिद्ध गति को प्राप्त हुए / विवेचन-प्रस्तुत सूत्र में अनीयस कुमार के शेष जीवन का तथा अनन्तसेन आदि पाँच श्रेष्ठिपुत्रों का वर्णन किया गया है / पीइदाणं' का अर्थ है-प्रीतिदान, जो हर्ष होने के कारण दिया जाता है। यहाँ दान का अर्थ है पारितोषिक—प्रेमोपहार / वैसे प्रीतिदान का प्रयोग दहेज अर्थ में विशेष प्रसिद्ध है / वर्तमान में विवाह के अवसर पर कन्यापक्ष की ओर से वर-पक्ष को दिया जाने वाला धन और सम्मान दहेज कहा जाता है, किन्तु प्रस्तुत सत्र से पता चलता है यह दहेज विवाह के अवसर पर वर के पिता की अोर से वर को दिया जाता था। जो वर द्वारा विवाहित कन्याओं में बांट दिया जाता था। 'नवरं सामाइयमाइयाई चउद्दस पुब्वाई'-इस वाक्य में पठित 'नवरं' यह अव्यय पद गौतम कुमार और अनीयस कुमार की अध्ययनगत भिन्नता को प्रकट कर रहा है। 'नवरं' शब्द का अर्थ है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org