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________________ तृतीय वर्ग ] / 27 माला और अलंकारों से सत्कार किया, सन्मान किया। सत्कार-सन्मान करके जीविका के योग्य विपुल प्रीतिदान दिया। प्रीतिदान देकर उसे बिदा किया। नव अनीयसकुमार बहत्तर कलायों में पंडित हो गया। उसके नौ अंग-दो कान, दो नेत्र, दो नामिका, जिह्वा, त्वचा और मन बाल्यावस्था के कारण जो सोये-से थे—अव्यक्त चेतना वाले थे, वे जागत से हो गये। वह अठारह प्रकार की देशी भाषाओं में कुशल हो गया। वह गीति में प्रीति वाला, गीत और नत्य में कुशल हो गया। वह प्रश्वयद्ध. गजयद्ध, रथयद्ध और बाहयुद्ध करने वाला बन गया। अपनी बाहों से विपक्षी का मर्दन करने में समर्थ हो गया। भोग भोगने का सामर्थ्य उममें अा गया। विवेचन—प्रस्तुत सूत्र में अनीयस कुमार के शैशव तथा शैक्षणिक जीवन का उल्लेख करके अब सूत्रकार उसके अग्रिम जीवन का वर्णन करते हुए कहते हैं--- ३–तए णं तं अणीयसं कुमारं उम्मुक्कबालभावं जाणित्ता अम्मापियरो सरिसियाणं [सरिव्वयाणं सरित्तयाणं सरिसलावण्ण-रूप-जोव्वण-गुणोववेयाणं सरिसए-हितो इब्भकुलेहितो प्राणिल्लियाणं] बत्तीसाए इन्भवरकण्णगाणं एगदिवसेणं पाणि गेण्हावेन्ति / तए णं से नागे गाहावई अणीयसस्स कुमारस्स इमं एयारूवं पीइदाणं दलयइ, तंजहा-बत्तीसं हिरण्णकोडीप्रो जहा महाबलस्स जाव [बत्तीसं सुवण्णकोडोयो, मउडे मउडष्पवरे, बत्तीसं कुंडलजुए कुडलजुयप्पवरे, बत्तीसे हारे हारप्पवरे, बत्तीसं प्रद्धहारे अद्धहारप्पवरे, बत्तीसं एगावलीओ एगावलिप्पवरायो, एवं मुत्तावलीओ, एवं कणगावलोप्रो, एवं रयणावलोओ, बत्तीसं कडगजोए कडगजोयप्पवरे, एवं तुडियजोए, बत्तीसं खोमजुयलाई खोमजुयप्पवराई, एवं वडगजुयलाइं, एवं पट्टजुयलाई, एवं दुगुल्लयलाई बत्तीसं सिरीयो, बत्तीसं हिरीयो, बत्तीसं धिईओ, कित्तीनी, बद्धीग्रो, लच्छीग्रो, बत्तीसं गंदाई, बत्तीसं भद्दाइं, बत्तीसं तले तलप्पवरे, सव्वरयणामए, णियगवरभवणकेऊ बत्तीसं झए भयप्पवरे, बत्तीसं बये वयपवरे, दसगोसाहस्सिएणं वएणं, बत्तीसं णाडगाड गाडगप्पवरा बतीस बद्धणं णाडएणं, बत्तीसं पासे आसप्पवरे, सव्वरयणामए, सिरिधरपडिरूवए, बत्तीसं हत्थी हस्थिप्पवरे सवरयणामए सिरिघरपडिरूवए बत्तीसं जाणाई जाणप्पवराई, बत्तीसं जुगाई जुगप्पवराई, एवं सिबियानो, एवं सदमाणीयो, एवं गिल्लीप्रो थिल्लोओ, बत्तीस वियडजाणाइं वियडजाणप्यवराई, बत्तीसं रहे पारिजाणिए बत्तीसं रहे संगामिए, बत्तीसं प्रासे आसप्पवरे, बत्तीसं हत्थी हत्थोप्पवरे, बत्तीसं गामे गामप्पवरे दसकुलसाहस्सिएणं गामेणं, बत्तीसं दासे दासप्पवरे, एवं चेव दासीओ, एवं किंकरे, एवं कंचुइज्जे, एवं वरिसधरे, एवं महत्तरए, बत्तीसं सोवण्णिए, अोलंबणदोवे, बत्तीसं रूप्पामए अोलंबणदीवे, बत्तीसं सुवण्णरूप्पामए ओलंबणदीवे, बत्तीसं सोवण्णिए उक्कंचणदीवे, बत्तीसं पंचरदीवे, एवं चेव तिणि वि, बत्तीसं सोवण्णिए थाले, बत्तीसं रूपमए थाले, बत्तीसं सुवण्णरूप्पमए थाले, बत्तीसं सोवणियायो पत्तीग्रो 3, बत्तीसं सोवण्णियाइं थासयाई 3, बत्तीसं सोवणियाई मल्लगाइं 3, बत्तीसं सोवणियानो तालियानो 3, बत्तीसं सोवणियानो कावइयाओ, बत्तीसं सोवण्णिए अवएडए 3, बत्तीसं सोवणियानो अवयक्काओ 3, बत्तीस सोवण्णिए पायपीढए 3, बत्तीसं सोवणियाप्रो भिसियाओ 3, बत्तीसं सोवणियाप्रो करोडियाओ 3, बत्तीसं सोवण्णिए पल्लंके 3, बत्तीस सोवणियाओ पडिसेज्जासो 3, बत्तोस हंसासणाई, बत्तोस कोंचासणाई, एवं गरुलासणाई, उग्णयासगाई, पणयासणाई, दोहासणाई, भद्दासणाई पक्खासणाई, मगरासणाई, बत्तीस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003476
Book TitleAgam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages249
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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