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________________ 26] [अन्तकृद्दशा तत्पश्चात् अनीयस कुमार को आठ वर्ष से कुछ अधिक उम्र वाला हुआ जानकर माता-पिता ने उसे कलाचार्य के पास भेजा। तत्पश्चात् कलाचार्य ने अनीयस कुमार को गणित जिनमें प्रधान है ऐसी लेख आदि शकुनिरुत (पक्षियों के शब्द) तक की बहत्तर कलाएँ सूत्र से, अर्थ से और प्रयोग से सिद्ध करवाई तथा सिखलाई। वें कलाएँ इस प्रकार हैं--(१) लेखन, (2) गणित, (3) रूप बदलना, (4) नाटक, (5) गायन, (6) वाद्य बजाना, (7) स्वर जानना, (8) वाद्य सुधारना, (6) समान ताल जानना (10) जुआ खेलना (11) लोगों के साथ वादविवाद करना (12) पासों से खेलना (13) चौपड़ खेलना (14) नगर की रक्षा करना (15) जल और मिट्टी के संयोग से वस्तु का निर्माण करना (16) धान्य निपजाना (17) नया पानी उत्पन्न करना, पानी को संस्कार करके शुद्ध करना एवं उष्ण करना (18) नवीन वस्त्र बनाना, रंगना, सीना और पहनना (11) विलेपन की वस्तु को पहचानना, तैयार करना, लेपन करना आदि (20) शय्या बनाना, शयन करने की विधि जानना आदि (21) आर्या छंद को पहचानना और बनाना (22) पहेलियाँ वनाना और बूझना (23) मागधिका अर्थात् मगध देश की भाषा में गाथा आदि बनाना (24) प्राकृत भाषा में गाथा आदि बनाना (25) गीति छंद बनाना (26) श्लोक (अनुष्टुप छंद) बनाना (27) सुवर्ण बनाना उसके आभूषण बनाना, पहनना आदि (28) नई चांदी बनाना, उसके आभूषण बनाना, पहनना आदि (26) चूर्ण-गुलाब अबीर आदि बनाना और उसका उपयोग करना (36) गहने घड़ना, पहनना आदि (31) तरुणी की सेवा करना-प्रसाधन करना (32) स्त्री के लक्षण जानना (33) पूरुष के लक्षण जानना (34) अश्व के लक्षण जानना (35) हाथी के हाथी के लक्षण जानना (36) गाय बैल के लक्षण जानना (37) मुर्गा के लक्षण जानना (38) छत्र-लक्षण जाना (36) दंडलक्षण जाना (40) खड्ग-लक्षण जानना (41) मणि के लक्षण जानना (42) काकणी रत्न के लक्षण जानना (43) वास्तुविद्या-मकान दूकान आदि इमारतों की विद्या (44) सेना के पड़ाव का प्रमाण प्रादि जानना (45) नया नगर बसाने आदि की कला (46) व्यूह-मोर्चा बनाना (47) विरोधी के व्यूह के सामने अपनी सेना का मोर्चा रचना (48) सेनासंचालन करना (46) प्रतिचार-शत्रसेना के समक्ष अपनी सेना को चलाना (50) चक्रव्यूह–चाक के बनाना (51) गरुड़ के आकार का व्यूह बनाना (52) शकटव्यूह रचना (53) सामान्य युद्ध करना (54) विशेष युद्ध करना (55) अत्यन्त विशेष युद्ध करना (56) अट्ठि (यष्टि या अस्थि से) युद्ध करना (57) मुष्टियुद्ध करना (58) बाहुयुद्ध करना (56) लतायुद्ध करना (60) बहुत को थोड़ा और थोड़े को बहुत दिखलाना (61) खड्ग की मूठ आदि बनाना (62) धनुष-बाण संबंधी कौशल होना (63) चांदी का पाक बनाना (64) सोने का पाक बनाना (65) सूत्र का छेदन करना (66) खेत जोतना (67) कमल के नाल का छेदन करना (68) पत्र-छेदन करना (66) कड़ा कुंडल आदि क का छेदन करना (70) मृत (मूछित) को जीवित करना (71) जीवित को मृत (मृततुल्य) करना और (72) काक घक आदि पक्षियों की बोली पहचानना / तत्पश्चात् वह कलाचार्य अनीयस कुमार को गणित प्रधान, लेखन से लेकर शकुनिरुत पर्यन्त बहत्तर कलाएँ सूत्र (मूल पाठ) से, अर्थ से और प्रयोग से सिद्ध कराता है तथा सिखलाता है। सिद्ध करवा कर और सिखला कर माता-पिता के पास ले जाता है। तब अनीयस कुमार के माता-पिता ने कलाचार्य का मधुर वचनों से तथा विपुल वस्त्र, गंध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003476
Book TitleAgam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages249
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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