________________ तृतीय वर्ग प्रथम अध्ययन : अनीयस उत्क्षेप १-जइ णं तच्चस्स। उक्खेवप्रो'। एवं खलु जंबू ! तच्चस्स वग्गस्स अंतगडदसाणं तेरस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा (1) अणीयसे, (2) अणंतसेणे, (3) अणिहय, (4) विऊ, (5) देवजसे, (6) सत्त सेणे, (7) सारणे, (8) गए, (6) सुमुहे, (10) दुम्मुहे, (11) कूवए, (12) दारुए, (13) प्रणादिट्ठी। "जइ णं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं तच्चस्स वग्गस्स अंतगडदसाणं तेरस अझयणा पण्णत्ता, तच्चस्स णं भंते ! वग्गस्स पढम-अज्झयणस्स अंतगडदसाणं के अ? पण्णते?" अणीयसादि-पद एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं भदिलपुरे णाम नयरे होत्था। दण्णो / तस्स णं भहिलपुरस्स उत्तरपुरच्छिमे दिसिभाए सिरिवणे णामं उज्जाणे होत्था / वण्णो / जियसत्त राया। तत्थ णं भद्दिलपुरे णयरे नागे नाम गाहावई होत्था। अड्ढे जाव [दित्त, विस्थिण्ण-विउल-भवणसयणासण-जाण-वाहणाइण्णे, बहुधन-बहुजायरूव-रयए, आप्रोगप्पओगसंपउत्त विच्छड्डिय-विउलभत्तपाणे, बहुदासी-दास-गो-महिस-गवेलगप्पभूए बहुजणस्स] अपरिभूए / तस्स णं नागस्स गाहावइस्स सुलसा-नामं भारिया होत्था / सूमाल-जाव [पाणि-पाया अहीण-पडिपुण्ण-पंचिदिय-सरोरा लक्खणवंजण-गुणोववेत्रा माणुम्माण-प्पमाण-पडिपुण्ण-सुजाय-सवंगसुदरंगी ससि-सोमाकार-कंत-पियदसणा] सुरूवा। मोक्षप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने अंतगडदशा के तृतीय वर्ग के 13 अध्ययन . फरमाये हैं-जैसे कि-- (1) अनीयस कुमार, (2) अनन्तसेन कुमार, (3) अनिहत कुमार, (4) विद्वत् कुमार, (5) देवयश कुमार, (6) शत्रुसेन कुमार, (7) सारण कुमार, (8) गज कुमार, (6) सुमुख कुमार, (10) दुर्मुख कुमार, (11) कूपक कुमार, (12) दारुक कुमार, (13) अनादृष्टि कुमार। भगवन् ! यदि श्रमण यावत् मोक्षप्राप्त भगवान् महावीर ने अन्तगडदशा के 13 अध्ययन बताये हैं तो भगवन् ! श्रमण यावत् मोक्षप्राप्त महावीर स्वामी ने अन्तगड सूत्र के तीसरे वर्ग के प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है ? अनीयसादि-पद-सुधर्मा स्वामी बोले-हे जंबू ! उस काल और उस समय में भद्दिलपुर 1. उत्क्षेप पद पूर्ववत् समझ लेना / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org