________________ बीओ वग्गो उत्क्षेप १-"जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्टमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं पढमस्स वग्गस्स अयम? पण्णत्त, दोच्चस्स णं भंते ! वग्गस्स अंतगडदसाणं समजेणं भगवया महावीरेणं कई अज्झयणा पण्णता? एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगरस अंतगडदसाणं दोच्चस्स वग्गस्स अट्ट अज्झयणा पण्णत्ता। संगहणी-गाहा अक्खोभसागर खलु समद्दहिमवंतप्रचल नामे य / धरणे य पूरणे वि य अभिचंदे चेव अटुमए / अक्षोभादि-पद जहा पढमो वग्गो तहा सव्वे अट अज्झयणा गुणरयणतवोकम्मं / सोलसवासाइं परिवारो। सेत्तुजे मासियाए संलेहणाए सिद्धी। आर्य जंबू ने आर्य सुधर्मा स्वामी से पूछा---हे भगवन् ! श्रमण भगवान् महावीर ने अंतगडदशा के प्रथम वर्ग का यह अर्थ प्रतिपादन किया है तो द्वितीय वर्ग के कितने अध्ययन फरमाये हैं ? सुधर्मा स्वामी इसका समाधान करते हुए बोले हे जंबू ! श्रमण भगवान महावीर ने आठवें अंग अंतगडदशा के द्वितीय वर्ग के पाठ अध्ययन फरमाये हैं। उस काल और उस समय में द्वारका नाम को नगरी थी। महाराज वृष्णि राज्य करते थे। रानी का नाम धारिणी था। उनके आठ पुत्र थे (1) प्रक्षोभकुमार, (2) सागरकुमार, (3) समुद्रकुमार, (4) हैमवन्तकुमार, (5) अचलकुमार, (6) धरणकुमार, (7) पूर्णकुमार, (8) अभिचन्द्रकुमार / जैसे—प्रथम वर्ग में गौतम कुमार का वर्णन किया गया है, उसी प्रकार इनके आठ अध्ययनों का वर्णन भी समझ लेना चाहिए। इन्होंने भी गुणरत्न तप का आराधन किया और 16 वर्ष का संयम पालन करके अन्त में शत्रुजय पर्वत पर एक मास की संलेखना द्वारा सिद्धिपद प्राप्त किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org