________________ प्रथम वर्ग ] [ 21 2-10 अज्झयणाणि १०–एवं जहा गोयमे तहा सेसा / वण्ही पिया, धारिणी माता, समुद्दे, सागरे, गंभीरे, थिमिए, अयले, कंपिल्ले, अक्खोभे, पसेणति, विण्हुए, एए एगगमा। पढमो वग्गो, दस अज्झयणा पण्णत्ता। 2-10 अध्ययन मूलार्थ--सुधर्मा स्वामी ने अपने शिष्य जंबू से कहा- "हे जंबू ! मोक्ष को प्राप्त भगवान् महावीर ने आठवें अंतगड सूत्र के प्रथम वर्ग के प्रथम अध्ययनों का यह अर्थ कहा है। जिस प्रकार गौतम का वर्णन किया गया है, उसी प्रकार शेष समुद्र, सागर, गम्भीर, स्तिमित, अचल, कांपिल्य, अक्षोभ, प्रसेनजित और विष्णु, इन नव अध्ययनों का अर्थ भी समझ लेना चाहिए। सबके पिता अन्धकवृष्णि थे। माता धारिणी थी। सब का वर्णन एक जैसा है। इस प्रकार दस अध्ययनों के समुदाय रूप प्रथम वर्ग का वर्णन किया गया है।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org