SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पत्नी थी। मुदगरपाणि यक्ष की वह उपासना करता था। राजगह नगर की ललिता गोष्ठी के छह सदस्यों के द्वारा बन्धुमती के चरित्र को भ्रष्ट करने से अजून माली के मन में अत्यन्त रोष पैदा हया और मुदगरपाणि यक्ष के सहयोग से उसने उनका वध कर दिया। वह हिंसा का नग्नताण्डव करने लगा ! प्रतिदिन सात व्यक्तियों को मारता / भगवान् महावीर के आगमन को श्रवण कर सुदर्शन श्रेष्ठी दर्शनार्थ जाता है। अर्जुन को यक्ष-पाश से मुक्त करता है और भगवान् के चरणों में पहुंचाता है। राजगृह के बाहर यक्षाविष्ट अर्जुन माली का आतंक था। क्या मजाल कि कोई नगर से बाहर निकलने की हिम्मत करे ! मगर भ० महावीर का पदार्पण होने पर सुदर्शन, माता-पिता के मना करने पर भी रुकता नहीं। वह भगवान के दर्शनार्थ रवाना होता है। मार्ग में अर्जुन का साक्षात्कार होता है / हिंसा पर अहिंसा की विजय होती है। इस वर्णन में यह भी प्रतिपादित किया गया है कि नामधारी अनेक भक्त हो सकते हैं किन्तू सच्चे भक्त बहुत ही दुर्लभ हैं। जिस समय आकाश में उमड़-घुमड़ कर घटाएं पायें, उन घटानों को देख कर कोई मोर से कहे तू कुहूक मत, केकारव मत कर ! मोर कहेगा, यह कभी संभव नहीं है। जो सच्चा भक्त है, वह समय आने पर प्राणों की बाजी भी लगा देता है किन्तु पीछे नहीं हटता / वह जानता है, बिना अग्नि-स्नान किये सुवर्ण में निखार नहीं पाता ! बिना घिसे हीरे में चमक नहीं पाती! वैसे ही विना कष्ट पाये भक्ति के रंग में भी चमकदमक नहीं आती। अर्जुन माली श्रमरण बनकर उग्र साधना करते हैं। जिस के नाम से एक दिन बड़े-बड़े वीरों के पांव थर्राते थे, हृदय धड़कते थे, जिसने पांच माह तेरह दिन में 1141 मानवों की हत्या की थी, वही व्यक्ति जब निग्नन्थ साधना को स्वीकार करता है, तो उसका जीवन आमूल-चूल परिवर्तित हो जाता है। लोग उन श्रमरण का कटवचन कहकर तिरस्कार करते हैं ! लाठी, पत्थर, ईंट और थप्पड़ों से उन्हें प्रताडित करते हैं तथापि उन के मन में याक्रोश पैदा नहीं होता ! वह यही चिन्तन करते हैं समणं संजयं दंत हणेज्ज कोइ कत्थई / नत्थि जीवस्स नासुत्ति एवं पेहेज्ज संजए।५° श्रमण संयत और दान्त होता है, वह इन्द्रियों का दमन करता है / यदि कोई उसे मारता और पीटता है तो भी वह चिन्तन करता है कि यह प्रात्मा कभी भी नष्ट होने वाला नहीं है, यह अजर अमर है, शरीर क्षणभंगुर है / उसका नाश होता है, तो उसमें मेरा क्या जाता है ! इस प्रकार समत्वपूर्वक चिन्तन करते हुए वे भयंकर उपसर्गों को भी शान्त भाव से सहन करते हैं / अर्जुन अपनी क्षमामयी उग्र साधना के द्वारा छह माह में ही मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं। छठे वर्ग में उस बालमुनि का भी वर्णन है जिसने छह वर्ष की लघुवय में प्रव्रज्या ग्रहण की थी।५१ ऐतिहासिक दृष्टि से महावीर के शासन में सब से लघवय में प्रव्रज्या ग्रहण करने वाला वही एक मूनि है। अन्य जो 50. उत्तराध्ययन सूत्र 2 / 27 51. 'कुमारसमणे' त्ति षडवर्षजातस्य तस्य प्रवजितत्वात, प्राह च 'छन्वरिसो पव्वइग्रो निग्गंथं होइऊरण पावयणं" ति, एतदेव चाश्चर्यमिह अन्यथा वर्षाप्टकादारान्न प्रवज्या स्यादिति / --भगवती सटीक भा. 1. श. 5, उ. 4, सू. 185. पत्र 219-2 [29] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003476
Book TitleAgam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages249
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy