________________ प्रस्तुत उपदेश को श्रवण कर श्रीकृष्ण अपिपास हो गये। वे अपने प्रापको धन्य अनुभव करने लगे / प्रस्तुत कथन की तुलना अन्तकृद्दशा में आये हुए भगवान् अरिष्टनेमि के इस कथन से कर सकते हैं कि जब भगवान् के मुंह से द्वारका का विनाश और जरत्कुमार के हाथ से स्वयं अपनी मृत्यु की बात सुनकर श्रीकृष्ण का मुखकमल मुझी जाता है, तब भगवान् कहते हैं श्रीकृष्ण ! तुम चिन्ता न करो। आगामी भव में तुम अमम नामक तीर्थंकर बनोगे।४६ जिसे सुनकर श्रीकृष्ण सन्तुष्ट एवं खेदरहित हो गये / प्रस्तुत आगम में श्रीकृष्ण के लधुभ्राता गजसुकुमार का कथाप्रसंग अत्यन्त रोचक व प्रेरणादायी है। भगवान अरिष्टनेमि के प्रथम उपदेश से ही वे इतने अधिक प्रभावित हुये कि सब कुछ परित्याग कर श्रमण बन जाते हैं और महाकाल श्मशान में भिक्ष महाप्रतिमा को स्वीकार कर ध्यानस्थ हो जाते हैं। सोमिल ब्राह्मण ने देखा कि मेरा जामाता होने वाला मुण्डित हो गया है / इसने मेरी बेटी के जीवन के साथ विवाह न कर खिलवाड़ किया है। क्रोध की प्रांधी से उसका विवेक-दीपक बुझ जाता है। उसने मुनि के सिर पर मिट्टी की पाल बांधकर धधकते अंगार रख दिये / मस्तक, चमड़ी, मज्जा, मांस के जलने से महाभयंकर वेदना हो रही थी तथापि वे ध्यान से विचलित नहीं हुए। उनके मन में तनिक भी विरोध या प्रतिशोध की भावना जाग्रत नहीं हुई। यह थी रोष पर तोष की शानदार विजय / दानवता पर मानवता का अमर जयघोप, जिसके कारण उन्होंने एक ही दिन की चारित्र-पर्याय द्वारा मोक्ष प्राप्त कर लिया। अन्तगडसूत्र के चार वर्ग के 41 अध्ययनों में उन राजकुमारों का उल्लेख हना है जिन्होंने श्रीकृष्ण वासुदेव के विराट्-वैभव और सुख-सुविधाओं से भरी हुई जिन्दगी को त्याग कर भगवान् अरिष्टनेमि के पास उग्र तप की पाराधना की, विविध प्रकार के तपों की आराधना की, और अन्त में केवलज्ञान के साथ मोक्ष प्राप्त किया। पाँचवें वर्ग के दश अध्ययनों में वासुदेव श्रीकृष्ण की पद्मावती, सत्यभामा, रुक्मिणी, जामवन्ती, प्रभृति आठ रानियाँ तथा दो पुत्रवधुओं के वैराग्यमय जीवन का वर्णन है। फूलों की शय्या पर सोने वाली राजयनियों ने उग्र साधना का राजमार्ग अपनाया। कहाँ राजरानी का भोगमय जीवन और कहाँ श्रमणियों का कठोर साधनामय जीवन ! इन अध्ययनों के अध्ययन से यह स्पष्ट होता है, नारी जितनी फल के समान सूकूमार है, उतनी ही तप:साधना में सिंहनी की भाँति कठोर भी है। इस प्रकार पाँच वर्ग के 51 अध्ययनों में भगवान नेमिनाथ के युग के 51 महान् साधकों का तपोमय जोवन उङ्कित है। द्वारका नगरी और उसके विध्वंस की घटनाएं तथा गजसूकुमाल का साख्यान ऐसे रहे हैं, जिस पर परवर्ती साहित्यकारों ने स्वतन्त्र रूप से अनेक काव्य ग्रन्थ लिखे हैं। इसमें अनुभव और प्रेरणानों के जीतेजागते प्रसंग हैं जो आज भी सत्पथप्रदर्शक हैं, भय-दुर्बलता, वासना-लालसा और भोगेपणा के गहन अन्धकार में भी अभय, प्रात्मविश्वास और वीतरामता की दिव्य किरणें-विकीर्ण करते हैं। छटठे, सातवें और आठवें वर्ग में भगवान महावीर के शासन-काल के 39 उग्र तपस्वी, क्षमामुर्ति और सरलात्मानों की हदय कंपाने वाली साधनायों का सजीव चित्रण है। मंकाई, किंकम के साधनामय जीवन का वर्णन है, जिन्होंने सोलह वर्ष तक गुण रम्न संवत्सर तप की आराधना की थी और विपुलगिरि पर्वत पर संथारा करके मुक्त हुये थे / छठे वर्ग के तुतीय अध्ययन में राजगह के अर्जुनमालाकार का वर्णन है। बन्धुमती उमकी --- 49, अन्तकृद्दशा सूत्र वर्म 5, अध्ययन-१ / [28] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org