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________________ 202] [ अन्तकृद्दशा रैवतक पर्वत पर जा रही थी। बीच में वह वर्षा से भीग गई और कपड़े सुखाने के लिए वहीं एक गुफा में ठहरी,' जिसकी पहचान आज भी राजीमती गुफा से की जाती है / 2 रैवतक पर्वत सौराष्ट्र में अाज भी विद्यमान है। संभव है प्राचीन द्वारका इसी की तलहटी में बसी हो। रैवतक पर्वत का नाम ऊर्जयन्त भी है। रुद्रदाम और स्कंधगुप्त के गिरनार शिला-लेखों में इसका उल्लेख है / वहां पर एक नन्दनवन था, जिसमें सुरप्रिय यक्ष का यक्षायतन था / यह पर्वत अनेक पक्षियों एवं लताओं से सुशोभित था। यहां पर पानी के झरने भी बहा करते थे और प्रतिवर्ष हजारों लोग संखडि (भोज, जीमनवार) करने के लिए एकत्रित होते थे। यहां भगवान् अरिष्टनेमि ने निर्वाण प्राप्त किया था। दिगम्बर परम्परा के अनुसार रैवतक पर्वत की चन्द्रगुफा में प्राचार्य धरसेन ने तप किया था, और यहीं पर भूतबलि और पुष्पदन्त आचार्यों ने अवशिष्ट श्र तज्ञान को लिपिबद्ध करने का आदेश दिया था। महाभारत में पाण्डवों और यादवों का रैवतक पर युद्ध होने का वर्णन आया है। जैन ग्रन्थों में रैवतक, उज्जयंत, उज्ज्वल, गिरिणाल और गिरनार यादि नाम इस पर्वत के आये हैं / महाभारत में भी इस पर्वत का दूसरा नाम उज्जयंत पाया है। (12) विपुल-गिरि पर्वत :-- राजगह नगर के समीप का एक पर्वत / आगमों में अनेक स्थलों पर इसका उल्लेख मिलता है / स्थविरों की देख-रेख में घोर तपस्वी यहां प्राकर संलेखना करते थे। जैन ग्रन्थों में इन पांच पर्वतों का उल्लेख मिलता है१. व भारगिरि 2. विपुल गिरि 1. गिरि रेवययं जन्ती, वासेणुल्ला उ अन्तरा। बासन्ते अन्धयारंमि अन्तो लयरगस्स सा ठिया / / 2. विविध तीर्थकल्प, 3.16 3. जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, पृ. 472 4. बृहत्कल्पभाष्यवृत्ति, 112922 5. (क) आवश्यकनियुक्ति, 307 (ख) कल्पसूत्र, 6 / 174, पृ. 182 (ग) ज्ञातृधर्म कथा, 5, पृ. 68 (घ) अन्तकृत्दशा, 5, पृ. 28 (ङ) उत्तराध्ययन टीका, 22, पृ. 280 6. जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज पृ. 473. 7. श्रादिपुराण में भारत, पृ.१०९. 8. भ. महावीर नी धर्मकथायो, पृ. 216, पं. बेचरदासजी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003476
Book TitleAgam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages249
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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