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________________ परिशिष्ट 2] / 186 (6) महाबलकुमार बल राजा का पुत्र / सुदर्शन सेठ का जीव महाबलकुमार / हस्तिनापुर नामक नगर था / वहाँ का राजा बल और रानी प्रभावती थी। एक बार रात में अर्धनिद्रा में रानी ने देखा "एक सिंह आकाश से उतर कर मुख में प्रवेश कर रहा है।" सिंह का स्वप्न देखकर रानी जाग उठी, और राजा बल के शयन-कक्ष में जाकर स्वप्न सुनाया / राजा ने मधुर स्वर में कहा "स्वप्न बहुत अच्छा है / तेजस्वी पुत्र की माता बनोगी।" प्रातः राजसभा में राजा ने स्वप्न-पाठकों से भी स्वप्न का फल पूछा / स्वप्नपाठकों ने कहा"राजन् ! स्वप्नशास्त्र में 42 सामान्य और 30 महास्वप्न हैं, इस प्रकार कुल 72 स्वप्न कहे हैं। तीर्थंकरमाता और चक्रवर्तीमाता 30 महास्वप्नों में से इन 14 स्पप्नों को देखती हैं :1. गज 8. ध्वजा 2. वृषभ 6. कुम्भ 3. सिंह 10. पद्मसरोवर 4. लक्ष्मी 11. समुद्र 5. पुष्पमाला 12. विमान 6. चन्द्र 13. रत्नराशि 7. सूर्य 14. निधूम अग्नि राजन् ! प्रभावती देवी ने यह महास्वप्न देखा है / अत: इसका फल अर्थलाभ, भोगलाभ, पुत्रलाभ और राज्यलाभ होगा। कालान्तर में पुत्र का जन्म हुआ, जिसका नाम महाबलकुमार रखा गया। कलाचार्य के पास 72 कलाओं का अभ्यास करके महाबल कुशल हो गया। आठ राजकन्यानों के साथ महाबलकुमार का विवाह किया गया। महावलकुमार भौतिक सुखों में लीन हो गया। एक बार तीर्थकर विमलनाथ के प्रशिष्य धर्मघोष मुनि हस्तिनापुर पधारे / उपदेश सुनकर महावल को वैराग्य हो गया। धर्मघोष मुनि के पास दीक्षा लेकर वह श्रमण बन गया, भिक्षु बन गया। महाबल मुनि ने 14 पूर्व का अध्ययन किया / अनेक प्रकार का तप किया / 12 वर्ष का श्रमण-पर्याय पालकर, काल के समय काल करके ब्रह्मलोक कल्प में देव बना। (10) मेघकुमार __ मगध सम्राट श्रेणिक और धारिणी देवी का पुत्र था, जिसने भगवान् महावीर के पास दीक्षा ग्रहण की थी। एक बार भगवान् महावीर राजगृह के गुणशीलक उद्यान में पधारे / मेघकुमार ने भी उपदेश सुना / माता-पिता से अनुमति लेकर भगवान् के पास दीक्षा ग्रहण की। जिस दिन दीक्षा ग्रहण की, उसी रात को मुनियों के यातायात से, पैरों की रज और ठोकर लगने से मेघ मुनि व्याकुल हो गया, अशान्त बन गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003476
Book TitleAgam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages249
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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