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________________ षष्ठ वर्ग] अंतिमसरीरिए चेव; तए णं ते थेरा भगवंतो समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ता समाणा समण भगवं महावीरं वंदइ, नमसइ; अइमुत्त कुमारसमणं अगिलाए संगिण्हंति, जाव वेयावडियं करेंति / अर्थात्-उस काल उस समय में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के शिष्य अतिमुक्त नाम कुमार श्रमण थे। वे प्रकृति से भद्र यावत् विनीत थे / वे अतिमुक्त कुमार श्रमण किसी दिन महावर्षा बरसने पर अपना रजोहरण काँख-बगल में लेकर तथा पात्र लेकर बाहर स्थंडिल-हेत गये। जाते हुए अतिमुक्त कुमार श्रमण ने मार्ग में बहते हुए पानी के एक छोटे नाले को देखा। उसे देखकर उन्होंने उस नाले की मिट्टी की पाल बांधी / इसके बाद जिस प्रकार नाविक अपनी नाव को पानी में छोड़ता है, उसी तरह उन्होंने भी अपने पात्र को उस पानी में छोड़ा, और "यह मेरी नाव है, यह मेरी नाव है"-ऐसा कह कर पात्र को पानी में तिराते हुए क्रीडा करने लगे / अतिमुक्त कुमार श्रमण को ऐसा करते हुए देखकर स्थविर मुनि उन्हें कुछ कहे बिना ही चले आए, और श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से उन्होंने पूछा भगवन् ! आपका शिष्य अतिमुक्त कुमार श्रमण कितने भव करने के बाद सिद्ध होगा ? यावत् सब दुखों का अन्त करेगा? श्रमण भगवान् महावीर स्वामी उन स्थविर मुनियों को संबोधित करके कहने लगे हे प्रायों ! प्रकृति से भद्र यावत् प्रकृति से विनीत मेरा अंतेवासी अतिमुक्त कुमार, इसी भव में सिद्ध होगा यावत सभी दुःखों का अन्त करेगा। अतः हे पार्यो! तुम अतिमुक्त कुमार श्रमण की हीलना, निन्दा, खिसना, गीं और अपमान मत करो। किन्तु तुम अग्लान भाव से अतिमुक्त कुमार श्रमण को ग्रहण करो। उसकी सहायता करो और आहार पानी के द्वारा विनयपूर्वक वैयावृत्य करो / अतिमुक्त कुमार श्रमण चरमशरीरी है और इसी भव में सब कर्मों का क्षय करने वाला है / श्रमण भगवान् महावीर स्वामी द्वारा यह वृत्तान्त सुनकर उन स्थविर मुनियों ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वन्दना-नमस्कार किया। फिर वे स्थविर मुनि अतिमुक्त कुमारश्रमण को अग्लान भाव से स्वीकार कर यावत उनकी वैयावृत्य करने लगे। सोलहवां अध्ययन अलक्ष ___ 20 तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणारसी नयरी, काममहावणे चेइए / तत्थ णं वाणारसीए अलक्के नामं राया होत्था। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जाव' विहरइ / परिसा निग्गया। तए णं अलक्के राया इमीसे कहाए लठ्ठ हद्वतुट्ठ जहा कोणिए जाव धम्मकहा। ___तए णं से अलक्के राया समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतिए जहा उदायणे तहा निक्खते, नवरं जेट्टपुत्तं रज्जे अभिसिंचइ / एक्कारस अंगाई। बहू वासा परियायो जाब विपुले सिद्ध / एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं छट्ठस्स वग्गस्स अयम? पण्णते। 1. वर्ग 6, सूत्र 15 2. उववाई 3. वर्ग 1, सुत्र 9 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003476
Book TitleAgam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages249
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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