________________ षष्ठ वर्ग | / 136 तब अतिमुक्त कुमार ने दूसरी और तीसरी बार भी यही कहा-'माता-पिता ! मैंने श्रमण भगवान् महावीर के निकट धर्म सुना है और वह धर्म मुझे इष्ट, प्रतीष्ट और रुचिकर हुआ है / अतएव मैं हे माता-पिता ! आपकी अनुमति प्राप्त कर श्रमण भगवान् महावीर के निकट मुण्डित होकर, गृहत्याग करके अनगार-दीक्षा ग्रहण करना चाहता हूँ।' इस पर माता-पिता अतिमुक्त कुमार से इस प्रकार बोले-'हे पुत्र ! अभी तुम बालक हो, असंबुद्ध हो / अभी तुम धर्म को क्या जानो ?' __ तब अतिमुक्त कुमार ने माता-पिता से इस प्रकार यहा~'हे माता-पिता ! मैं जिसे जानता हूँ, उसे नहीं जानता हूँ और जिसको नहीं जानता हूँ उसको जानता हूँ।' तब अतिमुक्त कुमार से माता-पिता इस प्रकार बोले-पुत्र ! तुम जिसको जानते हो उसको नहीं जानते और जिसको नहीं जानते उसको जानते हो, यह कैसे ? तब अतिमुक्त कुमार ने मात-पिता से इस प्रकार कहा-"माता-पिता ! मैं जानता है कि जो जन्मा है उसको अवश्य मरना होगा, पर यह नहीं जानता कि कब, कहाँ, किस प्रकार और कितने दिन बाद मरना होगा ? फिर मैं यह भी नहीं जानता कि जीव किन कर्मों के कारण नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देव-योनि में उत्पन्न होते हैं, पर इतना जानता हूँ कि जीव अपने ही कर्मों के कारण नरक यावत् देवयोनि में उत्पन्न होते हैं / इस प्रकार निश्चय ही हे माता-पिता ! मैं जिसको जानता हूँ उसी को नहीं जानता और जिसको नहीं जानता उसी को जानता हूँ / अतः हे माता-पिता ! मैं आपकी आज्ञा पाकर यावत् प्रव्रज्या अंगीकार करना चाहता हूं।" अतिमुक्त कुमार को माता-पिता जब बहुत-सी युक्ति-प्रयुक्तियों से समझाने में समर्थ नहीं हुए, तो बोले-हे पुत्र ! हम एक दिन के लिए तुम्हारी राज्यलक्ष्मी की शोभा देखना चाहते हैं / तब अतिमुक्त कुमार माता-पिता के वचन का अनुवर्तन करके मौन रहे / तब महाबल के समान उनका राज्याभिषेक हुअा फिर भगवान् के पास दीक्षा लेकर सामायिक से लेकर ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। बहुत वर्षों तक श्रमण-चारित्र का पालन किया / गुणरत्नसंवत्सर तप का पाराधन किया यावत् विपुलाचल पर्वत पर सिद्ध हुए। विवेचन प्रस्तुत सूत्र में राजकुमार अतिमुक्त कुमार तथा उनके माता-पिता के मध्य में हुए प्रश्नोत्तरों का सुन्दर विवरण प्राप्त होता है। अतिमुक्त कुमार ने जब अपने माता-पिता से एक ही विषय को जानने और न जानने की बात कही तो माता-पिता आश्चर्यचकित हो गये / इसी कारण माता-पिता ने अपने पुत्र को उसका स्पष्टीकरण करने को कहा / तब उसने अपने माता-पिता के सन्मुख दो बातें रखीं १-मैं जिसे जानता हूँ, उसे नहीं जानता हूँ। २-जिसे नहीं जानता हूँ, उसे जानता हूँ। राजकुमार अतिमुक्त की ये बातें सुनकर माता-पिता को बड़ा आश्चर्य हुआ / वे सोचने लगे—“जिसे जान लिया गया है, उसे न जानने का क्या मतलब ? और जिसे नहीं जाना, उसे जानने का क्या अर्थ ? जब ज्ञान अज्ञान और प्रज्ञान ज्ञान नहीं कहलाता तो अतिमुक्त कुमार के ऐसा कहने का क्या प्रयोजन हो सकता है ? अन्त में उन्होंने अतिमुक्त कुमार से कहा-"पुत्र ! अपने वक्तव्य को कुछ स्पष्ट करो। तुम्हारी यह प्रहेलिका हमारी समझ में नहीं आई।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org