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________________ 138 ] [अन्तकृद्दशा तए णं तं प्रइमुत्तं कुमारं अम्मापियरो एवं वयासी"बाले सि ताव तुम पुत्ता ! असंबुद्ध सि तुमं पुत्ता / कि णं तुम जाणसि धम्म ?" तए णं से अइमुत्ते कुमारे अम्मापियरो एवं क्यासी-“एवं खलु अहं अम्मयानो ! जं चेव जाणामि तं चेव न जाणामि, जं चेव न जाणामि तं चेव जाणामि। तए णं तं अइमुत्तं कुमारं अम्मापियरो एवं बयासी "कहं गं तुमं पुत्ता! जं चेव जाणसि जाव [तं चेव न जाणसि ? जं चेव न जाणसि] तं चेव जाणसि? तए णं से अइमुत्ते कुमारे अम्मापियरो एवं वयासो "जाणामि अहं अम्मयानो ! जहा जाएणं अवस्स मरियन्वं, न जाणामि अहं अम्मयात्रो ! काहे वा कहिं वा कहं वा कियच्चिरेण वा ? न जाणामि णं अम्मयानो ! केहि कम्माययणेहि जीवा नेरइयतिरिक्खजोणिय-मणस्स-देवेसु उववज्जंति, जाणामि णं अम्मयायो! जहा सरहिं कम्माययणेहि जीवा नेरइय जाव' उववज्जति / एवं खलु अहं अम्मयानो ! जं चेव जाणामि तं चेव न जाणामि, जं चेव न जाणामि तं चेव जाणामि / तं इच्छामो णं अम्मयाओ ! तुम्भेहि अब्भणुण्णाए जाव' पच्वइत्तए।" तए णं तं अइमत्तं कुमारं अम्मापियरो जाहे नो संचाएंति बहूहि प्राघवणाहिं जाव तं इच्छामो ते जाया! एगदिवसमवि रायसिरि पासेत्तए / तए णं से अइमुत्ते कुमारे अम्मापिउवयणमणुयत्तमाणे तुसिणीए संचिट्ठइ। अभिसे सो जहा महाबलस्स / निक्खमणं / जाव' सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जइ / बहूहि वासाइं सामण्णपरियागं पाउणइ, गुणरयणं तवोफम्म जाव५ विपुले सिद्ध। प्रतिमुक्त कुमार श्रमण भगवान् महावीर के पास धर्मकथा सुनकर और उसे धारण कर बहुत प्रसन्न और सन्तुष्ट हुआ / विशेष यह है कि उसने कहा- "देवानुप्रिय ! मैं माता-पिता से पूछता हूँ। तब मैं देवानुप्रिय के पास यावत् दीक्षा ग्रहण करूगा" ___ भगवान् महावीर बोले-“हे देवानुप्रिय ! जैसे तुम्हें सुख हो वैसे करो। पर धर्मकार्य में प्रमाद मत करो।" तत्पश्चात् अतिमुक्त कुमार अपने माता-पिता के पास पहुँचे / उनके चरणों में प्रणाम किया और कहा-'माता-पिता ! मैंने श्रमण भगवान् महावीर के निकट धर्म श्रवण किया है / वह धर्म मुझे इष्ट लगा है, पुनः पुनः इष्ट प्रतीत हुआ है और खूब रुचा है।' अतिमुक्त कुमार के माता-पिता ने कहा-वत्स ! तुम धन्य हो, वत्स ! तुम पुण्यशाली हो, वत्स ! तुम कृतार्थ हो कि तुमने श्रमण भगवान् महावीर के निकट धर्म श्रवण किया है और वह धर्म तुम्हें इष्ट, पुनः पुनः इष्ट और रुचिकर हुआ है। 1. इसी में 2. वर्ग 6, सूत्र 18 3-4. वर्ग 3, सूत्र 18 5. वर्ग 1, सूत्र 9 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003476
Book TitleAgam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages249
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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