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________________ षष्ठ वर्ग ] [137 तए णं भगवं गोयमे जेणेव समणे भगवं महावीर तेणेव उवागए, जाव [उवागच्छित्ता समणस्स भगवो महावीरस्स अदूरसामंते गमशागमणाए पडिक्कमेइ, पडिक्कमेत्ता एसणमणेसणं पालोएइ, पालोएत्ता भत्तपाणं] पडिदसेइ, पडिदंसेता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं समणे भगवं महावीरे अइमुत्तस्म कुमारस्स तोसे य धम्मकहा। तब अतिमुक्त कुमार भगवान् गौतम से इस प्रकार बोले--- 'हे पूज्य ! मैं भी आपके साथ श्रमण भगवान् महावीर को वंदन करने चलता हूँ।' श्री गौतम ने कहा---'देवानुप्रिय ! जैसे तुम्हें सुख हो वैसा करो !' तब अतिमुक्त कुमार गौतम स्वामी के साथ श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास आये और प्राकर श्रमण भगवान् महावीर को तीन बार दक्षिण तरफ से प्रदक्षिणा की। फिर वंदना करके पर्युपासना करने लगे। इधर गौतम स्वामी भगवान् महावीर की सेवा में उपस्थित हुए, और गमनागमन संबंधी प्रतिक्रमण किया, तथा भिक्षा लेने में लगे हुए दोषों की आलोचना की। फिर लाया हुआ आहारपानी भगवान् को दिखाया और दिखाकर संयम तथा तप से अपनी प्रात्मा को भावित करते हुए विचरने लगे। तब श्रमण भगवान् महावीर ने अतिमुक्त कुमार को तथा महती परिषद् को धर्म-कथा कही / अतिमुक्त की प्रव्रज्या : सिद्धि १८--तए णं से अइमुत्ते कुमार समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठ जाव' जं नवरं-देवाणुप्पिया! अम्मापियरो आपुच्छामि तए णं अहं देवाणुप्पियाणं अंतिए जाव पध्वयामि। महासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंधं करहि / तए णं से अइमत्ते कुमार जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवागए जाव' [उवागच्छित्ता अम्मापिऊणं पायवडणं कर इ, करेता एवं वयासी-"एवं खलु अम्मयायो ! मए समणस्स भगवरो महावीरस्स अंतिए धम्मे णिसंते, से वि य मे धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए।" तए णं तस्स अइमुत्तस्स अम्मापियरो एवं वयासी-"धन्नो सि तुमं जाया! संपुन्नो सि तुमं जाया ! कयत्थो सि तुम जाया! जंणं तुमे समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतिए धम्मे णिसंते, से वि य ते धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए। तए णं से अइमुत्ते कुमार अम्मापियरो दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी-एवं खलु अम्मयायो ! मए समणस्स भगवो महावीरस्स अंतिए धम्मे निसंते / से वि य णं मे धम्मे इच्छिए, पडिच्छिए, अभिरुइए। तं इच्छामि णं अम्मयानो! तुब्भेहि अब्भणुण्णाए समाणे समणस्स भगवश्रो महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता णं अगारामो अणगारियं] पवइत्तए / 1. वर्ग 3, सूत्र 18. 2. वर्ग 5, सूत्र 4. 3. वर्ग 3, सूत्र 18, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003476
Book TitleAgam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages249
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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