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________________ षष्ठ वर्ग] [ 135 गौतम और अतिमुक्त कुमार का समागम १७–तए णं से अइमुत्ते कुमार भगवं गोयमं अदूरसामंतेणं वीईवयमाणं पासइ, पासित्ता जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागए, भगवं गोयम एवं क्यासी-- __ "के णं भंते ! तुम्भे ? किं वा अडह ?" तए णं भंते गोयमे अइमुत्तं कुमारं एवं वयासी—"अम्हे णं देवाणुप्पिया! समणा निग्गंथा इरियासमिया जाव' गुत्तबंभयारी उच्च जाव [नीय-मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए] अडामो।" ___ तए णं अइमुत्ते कुमारे भगवं गोयम एवं वयासी-एह णं भंते ! तुब्भे जा णं अहं तुब्भं भिक्खं दवावेमि त्ति कटु भगवं गोयमं अंगुलीए गेण्हइ, गोण्हित्ता जेणेव सए गिहे तेणेव उवागए / तए णं सा सिरिदेवी भगवं गोयम एज्जमाणं पासड, पासित्ता हत्दा पासणामो अब्भटठेइ, अभटठेत्ता जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागया। भगवं गोयमं तिक्खत्तो प्रायाहिणं-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ, नमसइ, बंदित्ता नमंसित्ता विउलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं पडिलाभेइ, पडिलाभेत्ता पडिबिसज्जेइ। तए णं से अइमुत्ते कुमारे भगवं गोयम एवं वयासो -- "कहि णं भंते ! तुन्भे परिवसह ?" तए णं से मग गोयमे अइमुत्तं कुमारं एवं वयासी--- "एवं खलु देवाणुप्पिया ! मम धम्मारिए धम्मोवदेसए समणे भगवं महावीर प्राइगरे जाव संपाविउकामे इहेव पोलासपुरस्स नयरस्स बहिया सिरिवणे उज्जाणे प्रहापडिरूवं प्रोग्गहं प्रोगिहित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ / तत्थ गं अम्हे परिवसामो। उस समय अतिमुक्त कुमार ने भगवान् गौतम को पास से जाते हुए देखा। देखकर जहाँ भगवान् गौतम थे वहाँ पाये और भगवान् गौतम से इस प्रकार बोले ‘भते ! आप कौन हैं ? और क्यों घूम रहे हैं ?' तब भगवान् गौतम ने अतिमुक्त कुमार को इस प्रकार कहा–'हे देवानुप्रिय ! हम श्रमण निर्ग्रन्थ हैं, ईयासमिति अादि सहित यावत् ब्रह्मचारी हैं, छोटे बड़े कुलों में भिक्षार्थ भ्रमण करते हैं।' ___ यह सुनकर अतिमुक्त कुमार भगवान् गौतम से इस प्रकार बोले-'भगवन् ! आप आओ ! मैं आपको भिक्षा दिलाता हूँ।' ऐसा कहकर अतिमुक्त कुमार ने भगवान् गौतम की अंगुली पकड़ी और उनको अपने घर ले आये। श्रीदेवी महारानी भगवान् गौतम को आते देख बहुत प्रसन्न हुई यावत् प्रासन से उठकर भगवान् गौतम के सम्मुख आई / भगवान् गौतम को तीन बार दक्षिण तरफ से प्रदक्षिणा करके वंदना की, नमस्कार किया फिर विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम से प्रतिलाभ दिया यावत् विधिपूर्वक विजित किया। 1. वर्ग 3, सूत्र 18. 2. वर्ग 1, अ० 1, सूत्र 2. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003476
Book TitleAgam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages249
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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