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________________ पष्ठ वर्ग | [ 131 एवं-पुण्णभद्दे वि गाहावई, वाणियग्गामे नयर / पंच वासा परियानो विपुले सिद्ध / एवं-सुमणभद्दे वि गाहावई सावत्थीए णयरोए / बहुवासाइं परियाओ। विपुले सिद्ध / एवं-सुपइ8 वि गाहावई सावत्थीए णयरीए / सत्तावीसं वासा परियाओ / विपुले सिद्ध / एवं-मेहे वि माहावई रायगिहे नयरे / बहूई वासाई परियानो विपुले सिद्ध / अध्ययन 4-14 उस काल उस समय राजगृह नगर में गुणशीलनामक उद्यान था। वहाँ श्रोणिक राजा राज्य करता था। वहाँ काश्यप नाम का एक गाथापति रहता था। उसने मकाई की तरह सोलह वर्ष तक दीक्षापर्याय का पालन किया और अन्त समय में विपुलगिरि पर्वत पर जाकर संथारा आदि करके सिद्ध बुद्ध और मुक्त हो गया। इसी प्रकार क्षेमक गाथापति का वर्णन समझें / विशेष इतना है कि काकंदी नगरी के वे निवासी थे और सोलह वर्ष का उनका दीक्षाकाल रहा, यावत् वे भी विपुलगिरि पर सिद्ध हुए। ऐसे ही धृतिधर गाथापति का भी वर्णन समझे / वे काकंदी के निवासी थे। सोलह वर्ष तक मुनिचारित्र पालकर वे भी विपुलगिरि पर सिद्ध हुए। इसी प्रकार कैलाश गाथापति भी थे। विशेष यह कि ये साकेत नगर के रहने वाले थे, इन्होंने बारह वर्ष की दीक्षा पर्याय पाली और विपुलगिरि पर्वत पर सिद्ध हुए। ऐसे ही पाठवें हरिचन्दन गाथापति भी थे। वे भी साकेत नगर के निवासी थे। उन्होंने भी बारह वर्ष तक श्रमणचारित्र का पालन किया और अन्त में विपुलगिरि पर सिद्ध हुए। ___ इसी तरह नवमे वारत्त गाथापति राजगृह नगर के रहने वाले थे। बारह वर्ष का चारित्र पालन कर वे विपुलगिरि पर सिद्ध हुए। दशवें सुदर्शन गाथापति का वर्णन भी इसी प्रकार समझे / विशेष यह कि वाणिज्यग्राम नगर के बाहर द्युतिपलाश नाम का उद्यान था। वहाँ दीक्षित हुए / पांच वर्ष का चारित्र पालकर विपुलगिरि से सिद्ध हुए। पूर्णभद्र गाथापति का वर्णन भी ऐसा ही है / विशेष यह कि वे वाणिज्यग्राम नगर के रहने वाले थे। पाँच वर्ष का चारित्र पालन कर वह भी विपुलाचल पर्वत पर सिद्ध हुए। सुमनभद्र गाथापति श्रावस्ती नगरी के वासी थे। बहुत वर्षों तक चारित्र पालकर विपुलाचल पर सिद्ध हुए। सुप्रतिष्ठित गाथापति श्रावस्ती नगरी के थे और सत्ताईस वर्ष संयम पालकर विपुलगिरि पर सिद्ध हुए। ___मेंघ गाथापति का वृत्तान्त भी ऐसे ही समझे। विशेष-राजगृह के निवासी थे और बहुत वर्षों तक चारित्र पालकर विपुलगिरि पर सिद्ध हुए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003476
Book TitleAgam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages249
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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