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________________ 130] [ अन्तकृद्दशा होती है। तप रूप अग्नि के द्वारा कर्म-मल के भस्मसात् होने पर आत्मा शुद्ध स्फटिक की भांति निर्मल हो जाती है। इसलिए अर्जुनमुनि ने संयम ग्रहण करने के अनन्तर अपने कर्ममल युक्त आत्मा को निर्मल बनाने के लिये तपरूप अग्नि को प्रज्वलित किया। परिणाम-स्वरूप वे कैवल्य-प्राप्ति के अनन्तर निर्वाण-पद को प्राप्त हुए। श्रेणिकचरित्र में लिखा है कि अर्जुनमाली के शरीर में मुद्गरपाणि यक्ष का पांच मास 13 दिनों तक प्रवेश रहा / उससे उसने 1141 व्यक्तियों का प्राणान्त किया। इसमें 978 पुरुष और 163 स्त्रियाँ थीं। इससे स्पष्ट प्रमाणित है कि वह प्रतिदिन सात व्यक्तियों की हत्या करता रहा। यहां एक आशंका होती है कि जिस व्यक्ति ने इतना बड़ा प्राणि-वध किया और पाप कर्म से प्रात्मा का महान् पतन किया, उस व्यक्ति को केवल छह मास की साधना से कैसे मुक्ति प्राप्त हो गई ? उत्तर यह है कि तप में अचिन्त्य, अतयं एवं अद्भुत शक्ति है / आगम कहता है-भवकोडिसंचियं कम्मं तवसा निज्जरिज्जइ।' अर्थात् करोड़ों भवों में संचित किए-बांधे कर्म भी तपश्चर्या द्वारा नष्ट किए जा सकते हैं / यह भी कहा गया है अण्णाणी जं कम्म खवेइ भवसयसहस्सकोडीहि / तं नाणी तिहिं गुत्तो, खवेइ ऊसासमेत्तणं--प्रवचनसार। अर्थात् अज्ञानी जीव जिन कर्मों को लाखों-करोडों भवों में खपा पाता है, उन्हें त्रिगुप्त-मनवचन, काय का गोपन करने वाला ज्ञानी आत्मा एक श्वास जितने स्वल्प काल में क्षय कर डालता है / जब तीव्रतर तप की अग्नि प्रज्वलित होती है तो कर्मों के दल के दल सूखे घास-फूस की तरह भस्मसात् हो जाते हैं / इसके अतिरिक्त प्रस्तुत प्रसंग में यह भी कहा जा सकता है कि अर्जुन मालाकार द्वारा जो वध किया गया, वह प्रस्तुतः यक्ष द्वारा किया गया वध था। अर्जुन उस समय यक्षाविष्ट होने से पराधीन था / वह तो यंत्र की भांति प्रवृत्ति कर रहा था / अतएव मनुष्यवध योग्य कषाय की तीव्रता उसमें संभव नहीं। . 4-14 अध्ययन काश्यप आदि गाथापति १५--तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे, गुणसिलए चेइए। सेणिए राया, कासवे नाम गाहावई परिवसइ / जहा मकाई / सोलस वासा परियायो / विपुले सिद्ध / एवं-खेमए वि गाहावई, नवरं-कायंदी नयरी / सोलस वासा परियानो विपुले पध्वए सिद्ध / एवं-धिइहरे वि गाहावई कायंदीए नयरीए / सोलस वासा परियायो / विपुले सिद्ध / एवं-केलासे वि गाहावई, नवरं-साएए नगरे / बारस वासाई परियानो विपुले सिद्ध / एवं हरिचंदणे वि गाहावई साएए नयरे / बारस वासा परियानो विपुले सिद्ध / एवं वारत्तए वि गाहावई, नवरं-रायगिहे नयर / बारस वासा परियायो। विपुले सिद्ध / एवं-सुदंसणे वि गाहावई, नवर-वाणियग्गामे नयर / दुइपलासए चेइए। पंच वासा परियाओ। विपुले सिद्ध / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003476
Book TitleAgam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages249
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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