SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 160
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ षष्ठ वर्ग ] [ 123 तए णं से अज्जुणए मालागारे सुदंसणं समणोबासयं एवं वयासो--- "तं इच्छामि णं देवाणुप्पिया! अहमवि तुमए सद्धि समणं भगवं महाबीरं वंदित्तए जाव [नमंसित्तए सक्कारित्तए सम्माणित्तए कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं] पज्जुवासित्तए / प्रहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेहि / तए णं सुदंसणे समणोवासए मज्जुणएणं मालागारेणं सद्धि जेणेव गुणसिलए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता प्रज्जुणएणं मालागारेणं सद्धि समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो जाव [आयाहिणं पयाहिणं करेत्ता बंदइ, नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासइ / तं जहा-काइयाए बाइयाए माणसियाए / काइयाए ताव संकुइयग्गहत्थपाए पच्चासण्णे नाइदूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे, अभिमुहे विणएणं पंजलिउडे पज्जुवासइ / वाइयाएजं जं भगवं वागरेइ 'एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! अवितहमेयं भंते ! असंदिद्धभेयं भंते ! इच्छिप्रमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छिय-पडिच्छियमेयं भंते ! से जहेयं तुब्भे वदह' अपडिकूलमाणे पज्जुवासइ / माणसियाए महया संवेगं जणइत्ता तिव्वधम्माणुरागरत्तो] पज्जुवासइ / तए णं समणे भगवं महावीरे सुदंगस्स समणोवासगस्स अज्जुणयस्स मालागारस्स तोसे य महइमहालियाए परिसाए मझगए विचित्तं धम्ममाइक्खइ / सुदंसणे पडिगए। इधर वह अर्जुन माली मुहूर्त भर (कुछ समय) के पश्चात् आश्वस्त एवं स्वस्थ होकर उठा और सुदर्शन श्रमणोपासक को सामने देखकर इस प्रकार बोला--- 'देवानुप्रिय ! आप कौन हो ? तथा कहाँ जा रहे हो ?' यह सुनकर सुदर्शन श्रमणोपासक ने अर्जुन माली से इस तरह कहा 'देवानुप्रिय ! मैं जीवादि नव तत्त्वों का ज्ञाता सुदर्शन नामक श्रमणोपासक हूं और गुणशील उद्यान में श्रमण भगवान् महावीर को वंदन-नमस्कार करने जा रहा हूँ।' यह सुनकर अर्जुन माली सुदर्शन श्रमणोपासक से इस प्रकार बोला---'हे देवानुप्रिय ! मैं भी तुम्हारे साथ श्रमण भगवान् महावीर को वंदना-नमस्कार करना चाहता हूं, उनका सत्कार-सम्मान करना चाहता हूं, कल्याणस्वरूप, मंगलस्वरूप, दिव्यस्वरूप एवं ज्ञानस्वरूप भगवान् की पर्युपासना करना चाहता हूं।' सुदर्शन ने अर्जुन माली से कहा-'देवानुप्रिय ! जैसे तुम्हें सुख हो वैसा करो।' इसके बाद सुदर्शन श्रमणोपासक अर्जुन माली के साथ जहाँ गुणशील उद्यान में श्रमण भगवान् महावीर विराजमान थे, वहाँ आया और अर्जुन माली के साथ श्रमण भगवान महावीर को तीन बार [आदक्षिण प्रदक्षिणा की, वन्दना की और उन्हें नमस्कार किया। वन्दना-नमस्कार करके, तीन प्रकार की पर्युपासना करने लगा, यथा-कायिकी वाचिकी और मानसिकी। हाथ-पैर को संकुचित करके, न अधिक दूर न अधिक निकट ऐसे स्थान पर स्थित होकर, (धर्मोपदेश) श्रवण करते हुए-नमस्कार करते हुए, भगवान् की अोर मुह रखकर, विनयपूर्वक हाथ जोड़े हुए, पर्युपासना करना कायिकी उपासना है। वाचिकी उपासना है जो जो भगवान् कहते, उसे 'यह ऐसा ही है, भंते ! यही तथ्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003476
Book TitleAgam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages249
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy